मातृत्व लाभ (Maternity leave) लेने के संबंध में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. दरअसल, एक संविदा कर्मचारी ने अपनी कंपनी से मैटरनिटी लीव मांगी तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. महिला ने अधिकारियों से वापस नौकरी पर रखने की गुहार लगाई पर उसकी एक नहीं सुनी गई। अंत में महिला ने कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court On Maternity Leave) का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि महिला को नौकरी पर वापस रखा जाए.
क्या था मामला?
विजयनगर जिले की रहने वाली चांदबी बालिगर हुविनहादागली के रैथा संपर्क केंद्र में नौकरी कर रही थीं. यहां उन्हें जून 2014 में संविदा (Contractual employee Maternity Leave) पर एक साल के लिए अकाउंटेंट के तौर पर रखा गया था. जब महिला ने दूसरा बेबी कंसीव किया तो उसने 6 मई 2023 से 31 अगस्त, 2023 के बीच मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाय किया. 1 सितंबर, 2023 को जब महिला ने वापस हुविनाहादागली कृषि अधिकारी के सामने नौकरी पर वापसी की बात कही तो उसे बताया गया कि उसकी जगह पर किसी और को नौकरी दे दी गई है.
कोर्ट ने कहा-महिला को वापस नौकरी पर रखें
बाद में अपनी शिकायत लेकर महिला सहायक कृषि निदेशक के पास पहुंची. उसने कई अधिकारियों के सामने गुहार लगाई पर उसे सिवाय सांत्वना के कुछ नहीं मिला. सभी तरफ गुहार लगाकर महिला जब थक गई तब उसने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. एडवोकेट रोशन छब्बी ने इस संबंध में कर्नाटक हाईकोर्ट, धारवाड़ पीठ के समक्ष एक रिट याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद, न्यायमूर्ति एम जी एस कमल ने विजयनगर जिले के संयुक्त कृषि निदेशक और हुविनाहादगली में रैथा संपर्क केंद्र के कृषि अधिकारी को याचिकाकर्ता को अकाउंटेंट का काम संभालने और काम जारी रखने की अनुमति देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जब तक अकाउंटेंट की जगह कोई नियमित नियुक्ति नहीं होती है तब उसकी नौकरी को जारी रखा जाए.
'महिला को मिले बकाया राशि'
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को बकाया वेतन पाने का अधिकार है और प्रतिवादी अधिकारियों से कहा कि वे मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत सभी लाभों के साथ-साथ महिला के लिए भुगतान सुनिश्चित करें। अदालत ने प्रतिवादी प्राधिकारियों से याचिकाकर्ता को याचिका की लागत के रूप में 25,000 रुपए का भुगतान करने को भी कहा।
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क्या है राज्य सरकार का पक्ष?
राज्य सरकार ने चांदबी की याचिका का विरोध किया और अदालत में तर्क दिया कि चांदबी एक आउटसोर्स कर्मचारी थी और इस मामले में कोई कर्मचारी-नियोक्ता संबंध नहीं था. लेकिन जज इस बाद से सहमति नहीं हुए. न्यायमूर्ति कमल ने कहा क राज्य सरकार कर्मचारियों के मातृत्व अवकाश और अन्य लाभों के संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकती, भले ही वे आउटसोर्सिंग अनुबंधों या जनशक्ति एजेंसियों के माध्यम से नियोजित हों.
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