'हादसे के दौरान 128 KM प्रति घंटे की स्पीड पर थी कोरोमंडल एक्सप्रेस', ओडिशा ट्रेन दुर्घटना पर रेलवे का बयान

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jun 04, 2023, 11:55 PM IST

Coromandel Express accident

Odisha Train Accident: रेलवे ने कहा कि हादसे के दौरान कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन रफ्तार 128 किलोमीटर प्रति घंटा थी, जो निर्धारित गति से कम है.

डीएनए हिंदी: ओडिशा के बालासोर में दुर्घटना की शिकार हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन की रफ्तार को लेकर रेलवे ने रविवार को बयान जारी किया. रेलवे ने कहा कि कोरोमंडल की स्पीड निर्धारित गति से तेज नहीं थी और उसे लूप लाइन में दाखिल होने के लिए ‘ग्रीन सिग्नल’ मिला था. रेलवे के इस बयान को ट्रेन चालक के लिए एक तरह से क्लीन चिट के तौर पर देखा जा रहा है.

रेलवे बोर्ड के दो प्रमुख अधिकारियों सिग्नल संबंधी प्रधान कार्यकारी निदेशक संदीप माथुर और संचालन सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने बताया कि दुर्घटना किस तरह हुई होगी. उन्होंने ‘इंटरलॉकिंग सिस्टम’ के कामकाज के बारे में भी बताया. सिन्हा ने कहा कि कोरोमंडल एक्सप्रेस की दिशा, मार्ग और सिग्नल तय थे. उन्होंने कहा कि ग्रीन सिग्नल का मतलब है कि चालक जानता है कि उसका आगे का रास्ता साफ है और वह निर्धारित अधिकतम गति से ट्रेन चला सकता है. इस खंड पर निर्धारित गति 130 किलोमीटर प्रति घंटा थी और वह 128 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से अपनी ट्रेन चला रहा था. हमने लोको लॉग से इसकी पुष्टि की है.

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हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस की कितनी थी स्पीड?
बता दें कि बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी शुक्रवार शाम लगभग सात बजे ओडिशा के बालासोर में बाहानगा बाजार स्टेशन के निकट आपस में भिड़ गई थीं. अधिकारियों ने कहा कि बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन 126 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही थी. सिन्हा ने कहा, “दोनों रेलगाड़ियों की रफ्तार निर्धारित गति से तेज होने का कोई सवाल ही नहीं है.’

रेलवे ने समझाई हादसे की पूरी कहानी
उन्होंने कहा कि दुर्घटना केवल एक ट्रेन के कारण हुई, वह कोरोमंडल एक्सप्रेस थी. कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकरा गई और उसके डिब्बे मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गए जो लौह अयस्क से लदी हुई थी. माथुर ने दुर्घटना का संभावित कारण बताते हुए कहा कि अगर ट्रेन को ‘लूप लाइन’ पर ले जाना होता है तो ‘प्वाइंट मशीन’ को संचालित करना होता है. हमें यह देखना होगा कि आगे का ट्रैक खाली था या नहीं. सिग्नल को इस तरह से इंटरलॉक किया जाता है कि यह पता चल सके कि लाइन पर आगे कुछ है या नहीं. यह भी पता चल जाता है कि प्वाइंट मशीन ट्रेन को सीधे ले जा रही है या ‘लूप लाइन’ की ओर.

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अधिकारियों ने कहा कि ट्रेन को स्टेशन से बाहर ले जाने के लिए ‘इंटरलॉकिंग सिस्टम’ एक सुरक्षित तरीका है. उन्होंने कहा कि यह प्रणाली त्रुटि रहित और विफलता में भी सुरक्षित (फेल सेफ) है. सिन्हा ने कहा, ‘इसे ‘फेल सेफ’ प्रणाली कहा जाता है, तो इसका मतलब है कि अगर यह फेल भी हो जाए तो सारे सिग्नल लाल हो जाएंगे और ट्रेन परिचालन बंद हो जाएगा. अब जैसा कि मंत्री ने कहा कि सिग्नल प्रणाली में समस्या थी. हो सकता है कि किसी ने बिना केबल देखे कुछ खुदाई की हो. किसी भी मशीन के चलाने में विफलता का खतरा होता है.’ (भाषा इनपुट के साथ) 

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