नहीं रहे दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले फाइटर पायलट दलीप सिंह मजीठिया, जानें उनकी वीरता की कहानी

Written By पुनीत जैन | Updated: Apr 17, 2024, 09:13 PM IST

Dalip Singh Majithia

दुश्मनों की ईंट से ईंट बजाने वाले भारतीय वायुसेना के वीर सपूत दलीप सिंह मजीठिया का मंगलवार सुबह उत्तराखंड के रुद्रपुर में 103 साल की उम्र में निधन हो गया है.

भारत ने आज अपने एक वीर सपूत को खो दिया है. जंग में अपने हुनर से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले भारतीय वायुसेना के पूर्व स्क्वॉड्रन लीडर (सेवानिवृत्त) दलीप सिंह मजीठिया का मंगलवार सुबह उत्तराखंड के रुद्रपुर में 103 साल की उम्र में निधन हो गया है. इसके बाद भारतीय वायुसेना ने उन्हें अंतिम विदाई दी है. फाइटर पायलट मजीठिया को प्यार से उनके साथी  'माजी' कहकर पुकारते थे.

20 साल की उम्र में भरी थी सोलो उड़ान

दलीप सिंह मजीठिया का जन्म 27 जुलाई 1920 को शिमला में हुआ था. मात्र 20 साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटेन के दो ट्रेनर्स के साथ पहली बार लाहौर के वॉल्टन एयरफील्ज से टाइगर मोथ एयरक्राफ्ट से उड़ान भरी थी. वहीं, इसके 14 दिन बाद यानी ठीक 2 हफ्ते बाद अकेले उड़ान भरी थी. 


यह भी पढ़ेेंः क्या है पतंजलि का मामला, जिसमें कोर्ट ने रामदेव से कहा- आपके दिल में खोट है


बेस्ट पायलट ट्राफी से हुए सम्मानित 

मजीठिया ने कराची फ्लाइंग क्लब में जिप्सी मोथ विमान से उड़ान भरने की बारीकियां सीखीं. इसके बाद अगस्त 1940 में वह लाहौर के वाल्टन में इनिशियल ट्रेनिंग स्कूल (आईटी) में पायलट कोर्स के लिए शामिल हुए. महज तीन महीने बाद उनके जुनून और हुनर को देखकर उन्हें बेहद प्रतिष्ठित बेस्ट पायलट ट्रॉफी से सम्मानित किया गया. आगे की ट्रेनिंग के लिए उन्हें अंबाला के सर्वश्रेष्ठ फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल में तैनात किया गया. 


यह भी पढ़ेंः Gujarat में एक्सप्रेसवे पर बड़ा हादसा, ऑयल टैंकर में घुस गई कार, 10 लोगों की मौत


दूसरे विश्व युद्ध में लड़ाकू पायलट के तौर पर दिखाए जलवे

मार्च 1943 में दलीप 'बाबा' मेहर सिंह की कमान में नंबर 6 स्क्वॉड्रन में फ्लाइंग ऑफिसर बने. नवंबर 1943 में उनकी स्क्वॉड्रन आज के बांग्लादेश में कॉक्स बाजार पहुंची, जहां उन्होंने कई गंभीर और बेहद खतरनाक मिशन को अंजाम दिया. इसके बाद से उन्हें '14वीं सेना की आंख' के नाम से बुलाया जाने लगा. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने फाइटर पायलट के तौर पर बर्मा मोर्चे पर हॉकर हरीकेन विमान उड़ाते हुए अपने जलवे दिखाए. 


यह भी पढ़ें- कौन है फरजाना बेगम, भारतीय मां बच्चों के लिए पाकिस्तानी पति को चबवा रही है कानूनी चने


वायुसेना में मात्र सात साल का सफर 

23 अप्रैल 1949 को वह काठमांडू घाटी में विमान उतारने वाले पहले पायलट बने. बता दें कि एयर मार्शल असगर खान (जो बाद में पाकिस्तान की वायु सेना के प्रमुख बने) और एयर मार्शल रणधीर सिंह (जिन्हें साल 1948 में वीर चक्र से सम्मानित किया गया था) दोनों उनकी स्क्वॉड्रन का हिस्सा थे. उस दौरान उन्हें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (जो बाद में भारतीय सेना के प्रमुख बने) के साथ भी काम करने का मौका मिला. भारतीय वायुसेना में उनका करियर मात्र सात साल तक का ही रहा. भारत की आजादी के बाद उन्होंने एयरफोर्स से रिटायरमेंट ले लिया. हालांकि उड़ान के प्रति उनका जुनून साल 1979 तक बना रहा, जब उन्होंने 13 अलग-अलग विमानों में करीब 1,100 घंटे तक उड़ान भर कर एक नया फ्लाइंग रिकॉर्ड बनाया था.

डीएनए हिंदी का मोबाइल एप्लिकेशन Google Play Store से डाउनलोड करें.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.