Delhi High Court ने कहा- सबको अपनी पसंद का धर्म चुनने का हक, जबरन धर्म परिवर्तन अलग

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jun 04, 2022, 08:16 AM IST

दिल्ली हाई कोर्ट.

Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण के दावे की पुष्टि के लिए पर्याप्त सबूतों की जरूरत होती है.

डीएनए हिंदी: दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने जबरन धर्म परिवर्तन (Forceful religious conversions) के खिलाफ दायर एक याचिका पर कहा है कि सबको अपनी पसंद का धर्म चुनने का हक है. जबरन धर्म परिवर्तन पर बिना सही पड़ताल के सरकार को नोटिस नहीं जारी किया जा सकता है.

शुक्रवार को कहा कि जबरन धर्मांतरण (Force Conversion) के दावे की पुष्टि के लिये पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए और यह सोशल मीडिया के आंकड़ों पर आधारित नहीं हो सकता, जहां छेड़छाड़ की गई तस्वीरों के उदाहरण हैं. 

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बिना पड़ताल के लिए सरकार को नहीं दे सकते हैं नोटिस

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण का मुद्दा व्यापक प्रभाव वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और वह याचिका पर कोई राय बनाने या सरकार को नोटिस जारी करने से पहले विषय की गहराई से पड़ताल करना चाहती है. 

याचिका के जरिए, भयादोहन कर या तोहफे एवं धन के जरिये प्रलोभन के द्वारा किये जाने वाले धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. 

अपना धर्म चुनने का सबको हक

जस्टिस संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की बेंच ने कहा, 'सबसे पहले यह कि धर्मांतरण निषिद्ध नहीं है. यह किसी व्यक्ति का अधिकार है कि वह कोई भी धर्म, अपने जन्म के धर्म, या जिस धर्म को वह चुनना चाहता है, उसे माने. यही वह स्वतंत्रता है, जो हमारा संविधान प्रदान करता है. आप कह रहे हैं कि किसी व्यक्ति को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जा रहा है.'

धर्मांतरण के लिए किसी को नहीं कर सकते हैं मजबूर

जजों की बेंच ने कहा, 'धर्म में फरेब जैसी कोई चीज नहीं है. सभी धर्मों में मान्यताएं हैं. मान्यताओं के कुछ वैज्ञानिक आधार हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मान्यता फर्जी है. ऐसा नहीं है. वह किसी व्यक्ति की मान्यता है. उस मान्यता में यदि किसी व्यक्ति को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता है, वह एक अलग मुद्ददा है.' 

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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, 'अगर आप कहते हैं कि किसी को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया तो वह व्यक्ति का विशेषाधिकार है.'

किस विषय पर थी याचिका?

दिल्ली हाई कोर्ट दरअसल अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया है कि भय दिखाकर धर्मांतरण करना न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन करता है बल्कि पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ भी है, जो कि संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा है. 

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दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस तरह के अनुरोध का क्या आधार है और जबरन धर्मांतरण के आंकड़े कहां हैं तथा इस तरह के धर्मांतरण की संख्या कितनी है? 

कोर्ट ने मांग लिया धर्मांतरण का आंकड़ा

बेंच ने सवाल किया कि रिकॉर्ड में क्या सामग्री है. कुछ नहीं है, आपके द्वारा कोई दस्तावेज, कोई दृष्टांत नहीं दिया गया. मामले की विस्तृत पड़ताल की जरूरत है. हम अवकाश के बाद यह करेंगे. आंकड़े कहां हैं? कितने धर्मांतरण हुए हैं ? किसे धर्मांतरित किया गया? आप कह रहे हैं कि सामूहिक धर्मांतरण हो रहा है, तो आंकड़े कहां हैं?

सोशल मीडिया के आंकड़ों पर क्या बोला हाई कोर्ट

याचिकाकर्ता ने जब कहा कि उनके पास जबरन धर्मांतरण पर सोशल मीडिया के आंकड़े हैं, तब पीठ ने कहा, 'हमने (सोशल मीडिया पर) छेड़छाड़ की गई तस्वीरों के दृष्टांत देखे हैं. कुछ उदाहरणों में यह प्रदर्शित किया गया कि घटना हुई है और फिर यह सामने आया कि किसी और देश में 20 साल पहले हुई थी और उस तस्वीर को ऐसे दिखाया जाता है कि यह कल या आज की है.'

कोर्ट करना चाहती है विस्तृत पड़ताल 

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा महत्वपूर्ण है. इस पर पीठ ने कहा कि यह व्यापक प्रभाव वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और अदालत कोई राय बनाने से पहले इसकी गहराई से पड़ताल करना चाहती है. 

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सरकार चाहे तो कर सकते हैं कार्रवाई

हाई कोर्ट ने कहा, 'आपने इसे सरकार के संज्ञान में लाया है. अगर सरकार चाहे तो उसके कार्रवाई करने के लिए यह पर्याप्त है. उसे अदालत से निर्देश की जरूरत नहीं है. उसके पास कार्रवाई करने की शक्तियां हैं.' अदालत ने याचिका की आगे की सुनवाई के लिए 25 जुलाई की तारीख तय की है.' (इनपुट: भाषा)

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