डीएनए हिंदी: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक पति के लिए अपनी पत्नी को उसके जीवित रहते हुए एक विधवा की तरह व्यवहार करते हुए देखने से ज्यादा कष्टदायक अनुभव नहीं हो सकता है. दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि एक पति या पत्नी एक- दूसरे को वैवाहिक रिश्तों में जगह नहीं देते हैं तो वह विवाह नहीं टिक सकता है. ऐसा करना क्रूरता का भी काम है.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक पति के लिए इससे ज्यादा कष्टकारी कुछ नहीं हो सकता कि वह अपनी पत्नी कोई विधवा के रूप में काम करते हुए देखे. वह भी ऐसी स्थिति में, जब वह गंभीर रूप से घायल हो. दिल्ली हाई कोर्ट में एक महिला ने पति के पक्ष में तलाक देने के पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती दी थी. जिसमें महिला ने कहा था कि पति द्वारा उसके प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत के मुताबिक यह कहा जा सकता है कि पति और पत्नी के बीच सुला होने की कोई संभावना नहीं है. इसके साथ कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोप, पुलिस रिपोर्ट और आपराधिक मुकदमे को केवल मानसिक क्रूरता कहा जा सकता है.
पति ने लगाए थे ऐसे आरोप
इस जोड़े की शादी अप्रैल 2009 में हुई थी और अक्टूबर 2011 में उनको एक बेटी भी हुई. बेटी के जन्म देने से कुछ दिन पहले ही महिला अपना ससुराल छोड़कर मायके चली गई थी. इसके बाद पति ने पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी. पति का आरोप था कि उसकी पत्नी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर रही है. महिला ने पति द्वारा लगाए गए आरोपों से इनकार कर दिया. महिला का कहना था कि उसके पति ने ही उसे जबरदस्ती मायके भेजा था. वहीं, पति ने एक अन्य घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अप्रैल 2011 में उसे स्लिप डिस्क की समस्या हुई थी तो उसकी पत्नी ने देखभाल करने के बजाए अपने माथे से सिंदूर का निशान हटा दिया था. इतना ही नहीं बल्कि अपनी चूड़ियां तोड़कर सफेद सूट पहन लिया था. महिला ने दावा किया था कि उसे बीमारी है. वह खुद को विधवा बताने लगी थी.
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