राम मंदिर का प्रसाद मुफ्त बांटने वाली वेबसाइट पर एक्शन, दिल्ली HC ने लगाई रोक

रईश खान | Updated:Jan 22, 2024, 07:28 PM IST

ram mandir prasad

दिल्ली हाईकोर्ट ने वेबसाइट के मालिकों को KVIC के रजिस्टर्ड खादी चिह्न के समान या भ्रामक रूप से समान चिह्न वाले किसी भी सोशल मीडिया पेज को हटाने का निर्देश दिया है.

डीएनए हिंदी: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को 'खादी ऑर्गेनिक' नाम की वेबसाइट को निलंबित करने का आदेश जारी किया, जो विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुद को गलत तरीके से अयोध्या राम मंदिर प्रसाद वितरण की आधिकारिक वेबसाइट के रूप में पेश कर रही थी. कोर्ट  ने अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह से मुफ्त प्रसाद की पेशकश करने वाली वेबसाइट को जनता की धार्मिक भावनाओं से खेलने का दोषी पाया.

जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि वेबसाइट ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) की सद्भावना का फायदा उठाया, जो कपड़ा विकास को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक वैधानिक बॉडी है. कोर्ट ने कहा कि वेबसाइट ने केवीआईसी के साथ साझेदारी की आड़ में लोगों से पैसे ट्रांसफर कराने के लिए धोखा दिया. मुकदमे में आरोप लगाया गया कि वेबसाइट ने भारतीय और विदेशी ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर गुमराह किया कि वे एक फॉर्म भरकर क्रमशः 51 रुपये और 11 डॉलर का भुगतान करके अयोध्या राम मंदिर का प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं.

हाईकोर्ट ने वेबसाइट के मालिकों को KVIC के रजिस्टर्ड खादी चिह्न के समान या भ्रामक रूप से समान चिह्न वाले किसी भी सोशल मीडिया पेज को हटाने का निर्देश दिया है. इसके अतिरिक्त, मालिकों को खादी ऑर्गेनिक चिह्न या किसी अन्य चिह्न के तहत सामान या सेवाएं बनाने, बेचने या पेश करने से रोक दिया गया है जो खादी चिह्न का उल्लंघन कर सकता है या उसकी तरह लग सकता है.

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प्रसाद के नाम पर धन इकट्ठा किया
जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि वेबसाइट मालिकों ने वादा किए गए प्रसाद को भेजने की पुष्टि रसीद या सबूत प्रदान किए बिना जनता से गलत तरीके से धन एकत्र किया था. केवीआईसी ने खादी ऑर्गेनिक के संस्थापक आशीष सिंह और कंपनी मेसर्स ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का मुकदमा दायर किया. अदालत ने पाया कि खादी ऑर्गेनिक चिह्न में गलत तरीके से खादी ट्रेडमार्क शामिल किया गया, जिससे प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करने वाले श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के साथ संबद्धता की गलत धारणा पैदा हुई.

अदालत ने आदेश देते समय कहा कि याचिकाकर्ता अपने पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला प्रदर्शित करने में सक्षम है और अगर एक पक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा नहीं दी गई तो वादी को अपूरणीय क्षति होगी. सुविधा का संतुलन भी वादी के पक्ष में और प्रतिवादी संख्या 1 और 2 के विरुद्ध है. (इनपुट- PTI)

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