डीएनए हिंदी: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षा के लिए एक अभ्यर्थी की उम्मीदवारी रद्द करने के संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के फैसले को बरकरार रखा. छात्र ने यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा (Preliminary Examination) में अच्छी रैंक हासिल की थी, लेकिन फॉर्म भरने के दौरान उससे एक गलती ऐसी हो गई जो उसके आईएएस और आईपीएस बनने में रोड़ा बन गया.
दरअसल, अभ्यर्थी ने यूपीएससी के लिए अप्लाई करते समय फॉर्म में गलती से अपने भाई की फोटो और हस्ताक्षर अपलोड कर दिए. उम्मीदवार ने जब यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा तो उसने अच्छे मार्क्स हासिल किए. अभ्यर्थी को जब इसका एहसास हुआ तो उसने बोर्ड में एप्लीकेशन लिख इस गलती को सुधारने की अपील की. लेकिन संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने उसकी परीक्षा रद्द कर दी और मेन एग्जाम में बैठने की अनुमति नहीं दी.
इसके खिलाफ अभ्यर्थी ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के समक्ष रद्दीकरण को चुनौती दी और मुख्य परीक्षा में उपस्थित होने की अनुमति मांगी, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई. इसके बाद छात्र ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उच्च न्यायालय ने कैट के फैसले को बरकरार रखा, यह देखते हुए कि आवेदन विंडो बंद होने के बाद उम्मीदवारों के पास आवेदन पत्र की त्रुटियों को ठीक करने के लिए 7 दिन का समय होता है, जिसका याचिकाकर्ता ने उपयोग नहीं किया.
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अदालत ने रिट याचिका की खारिज
यह भी देखा गया कि उसकी उम्मीदवारी खारिज होने के लगभग 15 दिन बाद उसने ट्रिब्यूनल से संपर्क किया. मुख्य परीक्षा की निकटता और याचिकाकर्ता द्वारा उपाय मांगने में देरी को देखते हुए, अदालत ने रिट याचिका खारिज कर दी. यूपीएससी ने तर्क दिया कि उम्मीदवारों को अपने आवेदन पत्र अपलोड करने से पहले उनका पूर्वावलोकन और पुष्टि करनी होगी, जिसमें सुधार के लिए सात दिन का समय होगा.
याचिकाकर्ता को राहत देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, क्योंकि इससे उसे लाभ मिलेगा अन्य उम्मीदवारों को इससे वंचित कर दिया गया. अदालत ने ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों पर भी गौर किया कि सिविल सेवा परीक्षा नियम, 2023 के आधार पर यूपीएससी निर्देश वैधानिक हैं. इसमें कहा गया है कि परीक्षा नियमों के नोट 6(1)(ई) में निर्दिष्ट किया गया है कि वास्तविक फोटो, हस्ताक्षर के स्थान पर अप्रासंगिक फोटो, हस्ताक्षर अपलोड करने पर अयोग्यता हो जाएगी. (PTI इनपुट के साथ)
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