डीएनए हिंदी: दिल्ली में बिजली सब्सिडी योजना आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के 'दिल्ली मॉडल' की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है. अब ऐसा लग रहा है कि दिल्ली के कुछ नागरिकों को इस योजना के लाभ से अलग होना पड़ेगा. उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने दिल्ली के मुख्य सचिवन नरेश कुमार से कहा है कि वह विद्युत विभाग को निर्देश दें कि दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (DERC) की सलाह को मंत्रिपरिषद के सामने रखे और 15 दिन के अंदर इस पर फैसला करे. इस फैसले के तहत 5 किलोवॉट से ज्यादा भारी बिजली कनेक्शन वाले लोगों की बिजली सब्सिडी रोकी जा सकती है.
उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने 'गरीब और जरूरतमंद उपभोक्ताओं' के लिए बिजली सब्सिडी सीमित करने के संबंध में दिल्ली सरकार को दी गई डीईआरसी की वैधानिक सलाह पर यह निर्देश दिया. बहरहाल, इस परामर्श को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. दिल्ली सरकार ने इस निर्देश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उपराज्यपाल ने एक बार फिर अपने कार्यक्षेत्र से 'अवैध' तरीके से परे जाकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और संविधान का उल्लंघन किया है.
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दिसंबर 2022 में सौंपी गई थी रिपोर्ट
वी के सक्सेना ने मुख्य सचिव कुमार से बिजली विभाग को यह निर्देश देने को कहा है कि वह डीईआरसी की सलाह मंत्रिपरिषद के समक्ष रखे और 15 दिनों के भीतर निर्णय ले. अधिकारियों ने कहा कि वी के सक्सेना के निर्देश जिस रिपोर्ट पर आधारित हैं, वह कुमार ने तैयार की थी. उन्होंने बिजली वितरण कंपनियों द्वारा बिजली उत्पादन कंपनियों को बकाये का भुगतान नहीं किये जाने की शिकायतों पर गौर करते समय यह रिपोर्ट बनाई थी. इसे दिसंबर 2022 में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सौंपा गया था.
मुख्य सचिव ने अपनी रिपोार्ट में है कि डीईआरसी ने 2020 में दिल्ली सरकार को सिर्फ तीन या पांच किलोवाट बिजली कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं को बिजली सब्सिडी देने की सलाह दी थी. इससे राजधानी के लगभग 95 प्रतिशत उपभोक्ता सब्सिडी के दायरे में आ जाते और सरकार को प्रति वर्ष लगभग 316 करोड़ रुपये की बचत होती. डीईआरसी ने सलाह दी थी कि पांच किलोवाट से ज्यादा लोड वाले उपभोक्ता निश्चित तौर पर 'गरीब' नहीं होंगे और उन्हें सब्सिडी नहीं दी जानी चाहिए. इस सलाह को जब नवंबर 2020 में बिजली विभाग ने संबंधित मंत्री के समक्ष रखा, तो उन्होंने इसे अगले साल मंत्रिपरिषद के सामने रखने को कहा.
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'वित्त विभाग से नहीं ली गई मंजूरी'
मुख्य सचिव की रिपोर्ट के अनुसार, बिजली विभाग ने 13 अप्रैल, 2021 को फिर से तत्कालीन बिजली मंत्री सत्येंद्र जैन के समक्ष एक नोट रखा लेकिन इसे मौजूदा योजना के पक्ष में खारिज कर दिया गया. मुख्य सचिव की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली विभाग डीईआरसी की वैधानिक सलाह को न केवल उपराज्यपाल के विचारार्थ रखने में विफल रहा, बल्कि इसे कैबिनेट के समक्ष भी विचार के लिए नहीं रखा गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा सब्सिडी योजना को आगे बढ़ाने से पहले वित्त विभाग की मंजूरी भी नहीं ली गई थी. इस रिपोर्ट के आधार पर उपराज्यपाल ने मुख्य सचिव से कहा है कि वह तत्कालीन बिजली मंत्री द्वारा कार्य संचालन नियमों में कथित चूक किए जाने के बारे में मुख्यमंत्री को अवगत कराएं और उनसे अनुरोध करें कि वह अपने मंत्रिपरिषद के सदस्यों को इसके प्रावधानों का ईमानदारी से पालन करने का निर्देश दें.
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