डीएनए हिंदी: केरल के एर्नाकुलम जिले के कलामासेरी इलाके में रविवारको यहोवा साक्षियों की प्रार्थना सभा में कई विस्फोट हुए. कन्वेंशन सेंटर में हुए विस्फोट के बाद 'यहोवा साक्षी' को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. केरल में यहोवा साक्षी बड़ी संख्या में हैं और वे एक शताब्दी से अधिक समय से यहां सक्रिय हैं. इस पुलिस घटना की जांच कर रही है. इस बीच एक व्यक्ति ने घटना की जिम्मेदारी लेते हुए कोकादरा पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया. ऐसे में हम बताते है कि कौन होते हैं 'यहोवा साक्षी', जिनकी इस ब्लास्ट के काफी चर्चा हो रही है.
यहोवा के साक्षी एक ईसाई धार्मिक संप्रदाय है, जो अपनी विशिष्ट मान्यताओं और प्रथाओं के लिए जाना जाता है. उनकी उपस्थिति 240 से अधिक देशों में है. यहोवा वाले पवित्र त्रिमूर्ति, यानी ईश्वर पिता, पुत्र (यीशु मसीह) और पवित्र आत्मा के सिद्धांत में विश्वास नहीं करते हैं. इसकी मान्यताएं और प्रथाएं ईसाई धर्म से भिन्न हैं. उनके लिए यहोवा ही एकमात्र सच्चा ईश्वर है, जो सभी चीजों का बनाने वाला है. यहोवा के साक्षी मानते हैं कि यीशु ईश्वर से अलग हैं. वह ईश्वर के पुत्र के रूप में सेवा कर रहे हैं.
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हिब्रू भाषा में ईश्वर का नाम है Jehovah
ईसाई धर्म में ईसा मसीह को परमपिता ईश्वर का बेटा माना जाता है. हिब्रू भाषा में ईश्वर का नाम Jehovah (येहोवा) बताया गया है. इसी वजह से Jehovah’s Witnesses समूह, क्रिसमस नहीं मनाता है. Jehovah’s Witnesses समुदाय को घर-घर जाकर ईसाई धर्म के लिए प्रचार करने के लिए जाना जाता है. इन लोगों का मानना है कि दुनिया की अंत नजदीक है और बहुत जल्दी ईश्वर की सत्ता स्थापित हो जाएगी. इस आंदोलन की शुरुआत 19वीं सदी में अमेरिका में हुई थी, जबकि भारत में इसकी शुरुआत वर्ष 1905 से मानी जाती है.
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ये है यहोवा साक्षी का इतिहास
'यहोवा साक्षी' की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमेरिका में मानी जाती है. इस आंदोलन की स्थापना बाइबिल के छात्र और उपदेशक चार्ल्स टेज रसेल ने की थी, जिन्होंने 1870 के दशक में बाइबिल की भविष्यवाणी और सिद्धांत की अनूठी व्याख्याएं विकसित की थीं. उन्होंने 1884 में सिय्योन वॉच टावर ट्रैक्ट सोसाइटी की स्थापना की, जिसे बाद में वॉच टावर बाइबिल एंड ट्रैक्ट सोसाइटी के नाम से जाना गया. जिसने आंदोलन की प्रकाशन और संगठनात्मक शाखा के रूप में कार्य किया. चार्ल्स टेज रसेल के नेतृत्व में, आंदोलन ने विशिष्ट सैद्धांतिक विश्वास विकसित किया और 1916 में उनके निधन के बाद इसका , नेतृत्व जोसेफ रदरफोर्ड ने किया था. जिन्होंने महत्वपूर्ण संगठनात्मक और सैद्धांतिक परिवर्तन किए. Jehovah’s Witnesses ईसाई समुदाय से जुड़ा एक केस भी हम आपको बताना चाहते हैं. भारत में Jehovah’s Witnesses पहली बार 1986 में सुर्खियों में आए थे. केरल में इस समुदाय के तीन बच्चों को राष्ट्रगान ना गाने की वजह से स्कूल से निकाल दिया गया था. स्कूल के इस फैसले को चुनाती देते हुए, Jehovah’s Witnesses के लोग सुप्रीम कोर्ट तक गए. इनका तर्क था कि इनका धर्म, इन्हें सिर्फ और सिर्फ Jehovah की आराधना की अनुमति देता है. इसके अलावा वो किसी और की पूजा नहीं कर सकते. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इनके तर्क को मान लिया था. कोर्ट का कहना था कि अगर उन्हें राष्ट्रगान के लिए बाध्य किया गया तो ये संविधान के अनुच्छेद 25 के बुनियादी अधिकार का उल्लंघन होगा.
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