Money Laundering Cases: संजय राउत-अनिल देशमुख जेल से बाहर मना पाएंगे दिवाली? जमानत पर आज आ सकता है फैसला

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 21, 2022, 09:14 AM IST

Money Laundering: संजय राउत को 31 जुलाई और एनसीपी नेता अनिल देशमुख को दो नवंबर 2021 को गिरफ्तार किया गया था.  

डीएनए हिंदीः मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) से जुड़े अलग-अलग मामलों में गिरफ्तार शिवसेना सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) और महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और एनसीपी नेता अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) की जमानत पर आज सुनवाई होनी है. 100 करोड़ रुपये की वसूली से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में अनिल देशमुख ने ईडी की तरफ से दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से 4 अक्टूबर को जमानत मिलने के बाद इस मामले में भी जमानत की अर्जी दी. 

क्यों हुई थी अनिल देशमुख की गिरफ्तारी? 
अनिल देशमुख को सीबीआई ने महाराष्ट्र में 100 करोड़ रुपये की वसूली से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार किया था. 2 नवंबर 2021 से वह मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में बंद हैं. कई बार उनकी जमानत अर्जी खारिज हो चुकी है. वह इस समय न्यायिक हिरासत में हैं. देशमुख को पिछले सप्ताह ‘कॉरोनेरी एंजियोग्राफी’ के लिए निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अनिल देशमुख पर मुंबई के पूर्व कमिश्मर परमबीर सिंह ने आरोप लगाया था कि उन्होंने मुंबई के बार और रेस्टोरेंट से हर महीने 100 करोड़ रुपये वसूली का टारगेट दिया था. सीबीआई कोर्ट ने पिछले सुनवाई में इस मामले में जमानत अर्जी पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. 

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संजय राउत पर क्या हैं आरोप?     
संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया है. उन्हें लंबी पूछताछ के बाद इसी साल 31 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था. यह मामला पात्रा चॉल घोटाले से जुड़ा है. बता दें कि उपनगरी क्षेत्र गोरेगांव में 47 एकड़ में फैली पात्रा चॉल को सिद्धार्थ नगर के नाम से भी जाना जाता है और उसमें 672 किरायेदार परिवार हैं. 2008 में, महाराष्ट्र गृहनिर्माण एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) ने एचडीआईएल (हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) की एक सहयोगी कंपनी गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (जीएसीपीएल) को चॉल के पुनर्विकास का अनुबंध सौंपा. जीएसीपीएल को किरायेदारों के लिए 672 फ्लैट बनाने थे और म्हाडा को कुछ फ्लैट देने थे. ईडी के अनुसार, पिछले 14 वर्षों में किरायेदारों को एक भी फ्लैट नहीं मिला, क्योंकि कंपनी ने पात्रा चॉल का पुनर्विकास नहीं किया, बल्कि अन्य बिल्डरों को भूमि के टुकड़े और फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) 1,034 करोड़ रुपये में बेच दिये. 

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