Fake Lawyers: बार काउंसिल ने दिल्ली में 107 फर्जी वकीलों को हटाया, एक्शन के पीछे कई वजहें

Written By मीना प्रजापति | Updated: Oct 28, 2024, 11:17 PM IST

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बड़ी कार्रवाई करते हुए दिल्ली के 107 फर्जी वकीलों को हटा दिया है. इस निर्णायक कार्रवाई का उद्देश्य फर्जी वकीलों और उन लोगों को खत्म करना है जो अब कानूनी अभ्यास के मानकों को पूरा नहीं करते हैं.

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए दिल्ली में वकीलों की लिस्ट से 107 फर्जी वकीलों को हटाया है. 26 अक्टूबर को बार काउंसिल ऑफ इंडिया के एक बयान में कहा गया, इस निर्णायक कार्रवाई का उद्देश्य फर्जी वकीलों और उन लोगों को खत्म करना है जो अब कानूनी अभ्यास के मानकों को पूरा नहीं करते हैं. यह कार्रवाई बार काउंसिल ऑफ इंडिया सर्टिफिकेट एंड प्लेस ऑफ प्रैक्टिस (वैरिफिकेशन) नियम, 2015 के नियम 32 के तहत की गई है, जिसके बाद अब ये वकील किसी भी कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे. बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने 2019 से लेकर अक्टूबर 2024 के बीच दिल्ली के 107 वकीलों की सदस्यता रद्द कर दी है. 

बीसीआई की विस्तृत जांच के बाद पाया गया कि इन वकीलों के दस्तावेज फर्जी थे और लाइसेंस लेते समय इन्होंने गलत सूचना दी. बीसीआई के सचिव श्रीमांतो सेन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि विधिक व्यवसाय के प्रति लोगों के भरोसे को कायम रखने के लिए अनैतिक विधिक व्यवसाय से जुड़े लोगों पर लगाम लगाया गया है. अधिकारी ने बताया कि 2019 से लेकर अक्टूबर 2024 के बीच केवल दिल्ली के 107 वकीलों का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है. 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि 2019 से 23 जून, 2023 के बीच, हजारों फर्जी अधिवक्ताओं को उनकी साख और प्रैक्टिस की गहन जांच के बाद हटा दिया गया. ये निष्कासन मुख्य रूप से फर्जी और जाली प्रमाणपत्रों के मुद्दों और नामांकन के दौरान गलत बयानी के कारण हुए हैं. इसके अलावा, सक्रिय रूप से कानून का अभ्यास करने में विफलता और बार काउंसिल की सत्यापन प्रक्रियाओं का पालन न करने के कारण भी अधिवक्ताओं के नाम सक्रिय प्रैक्टिस से हटा दिए जाते हैं.


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सदस्यता रद्द करने का ये है नियम
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने नियमों में संशोधन करने के बाद एक नया नियम लागू किया था. इस नियम को सर्टिफिकेट और प्लेस ऑफ प्रैक्टिस (वेरिफिकेशन) नियम, 2015 के नियम 32 के नाम से जाना जाता है. 2015 के टीसी (सिविल) नंबर 126 में अजयिंदर सांगवान और अन्य बनाम दिल्ली बार काउंसिल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने नियम 32 को प्रभावी ढंगा से लागू करने की अनुमति दी है. इसी नियम के तहत अपनी प्रेक्टिस के पांच साल पूरे कर रहे वकीलों का सत्यापन कराया गया, जिसमें 107 वकील फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सदस्यता लिए हुए पाए गए. फिर उनके फर्जी दस्तावेजों को आधार बनाकर ही बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उनकी मान्यता रद्द करने की कार्रवाई की.

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