Gandhi Jayanti 2024: महात्मा गांधी की हत्या में कई साजिशकर्ता थे शामिल, जानिए गोडसे का नाम कैसे आया सामने?

Written By सुमित तिवारी | Updated: Oct 02, 2024, 10:51 AM IST

Gandhi Jayanti 2024

Gandhi Jayanti 2024: 155वीं गांधी जयंती पर आज हम आपको गांधी जी की हत्या से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं. इस लेख में हमने गोडसे और हत्या में शामिल साजिशकर्ता के पहचान के बारे में लिखा है.

Gandhi Jayanti 2024: हर साल 2 अक्टूबर के दिन गांधी जयंती मनाई जाती है. बापू ने अपने पूरे जीवन में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म बताया है. इसलिए इस दिन को अंतरराष्ट्रीय अंहिसा दिवस (International Non-Violence Day) के रूप में भी मनाया जाता है. इस साल 155वीं गांधी जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर आज हम आपको गांधी जी की हत्या से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानी बताने जा रहे हैं. 

आजाद भारत की पहली फांसी
नाथूराम गोडसे और नारायण डी आप्टे को बाद में गांधी जी की हत्या के आरोप में दोषी ठहराते हुए 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई थी. एक बात और ये आजाद भारत की पहली फांसी थी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हजारों लोगों के बीच से बापू पर गोली चलाने वाले गोडसे की पहचान कैसे हुई थी. पुलिस को कैसे पता चला की इतनी  भीड़ में गोडसे ने गोली चलाई है. 

पहचान करने का तरीका
आपको बता दें कि गोडसे के इलावा इस हत्या में कई साजिशकर्ता गिरप्तार हुए थे. दरअसल उस समय ओरोपियों की पहचान करने का एक तरीका होता था जिसे आइडेंटिफिकेशन परेड के नाम से जाना जाता था. नाथूराम गोडसे, नारायण डी. आप्टे और विष्णु करकरे सहित हत्या में शामिल प्रमुख आरोपियों की पहचान करने के लिए कई ऐसी परेड आयोजित की गईं थी. 

28 फरवरी, 1948 को हुई आइडेंटिफिकेशन परेड
इस परेड के दौरान गवाहों को अलग-अलग व्यक्तियों में से आरोपियों की पहचान करने के लिए कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस परेड से आरोपियों की सही पहचान हो जाती थी. 28 फरवरी, 1948 को, पहली आइडेंटिफिकेशन परेड  मजिस्ट्रेट किशन चंद की निगरानी में हुई. इस परेड में गोडसे के साथ नारायण आप्टे और विष्णु करकरे भी शामिल थे.


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परेड के दौरान हुआ ये
इस परेड के दौरान, कई गवाहों ने गोडसे को सही ढंग से पहचाना. प्रमुख गवाहों में राम चंदर, कालीराम, सी. पाचेको, मार्टो थडियस, सुरजीत सिंह, मस्त. कोलोचंस और छोटू बन शामिल थे. ये वो लोग थे, जिन्होंने बिना किसी संदेह के गोडसे को पहचाना. इस परेड के दौरान हुई पहचान ने हत्या का पक्ष और भी अधिक मजबूत कर दिया. 

बचाव में कही गई ये बातें
उधर बचाव में ये कहा था कि परेड के दौरान नाथूराम गोडसे के सिर में पट्टी बांधी गई थी, जो कि अन्य कैदियों के सिर पर नहीं थी. इसलिए नाथूराम गोडसे की पहचान आसानी से हो सकी. नारायण आप्टे और विष्णु करकरे की पहचान में कहा जाता है कि उनकी पहचान इसलिए की गई क्योंकि वो मराठी थे इस वजह से वह भीड़ में साफ दिखाई देते थे. 

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