डीएनए हिंदी: राष्ट्रपति पद के विपक्षी की कोशिशों को एक और झटका लगा है. शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला के बाद अब गोपाल कृष्ण गांधी ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है. तीन संभावित उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद विपक्षी दलों के नेता 18 जुलाई को होने वाले चुनाव के लिए संयुक्त उम्मीदवार का नाम तय करने को लेकर मंगलवार दोपहर दिल्ली में फिर से बैठक करेंगे. अब चर्चा है कि विपक्ष अपने संयुक्त उम्मीदवार के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के नेता यशवंत सिन्हा का नाम आगे कर सकता है.
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कोलकाता में कहा कि कुछ विपक्षी दलों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनाने का सुझाव दिया है.
गोपाल कृष्ण गांधी ने ठुकराया विपक्ष का ऑफर
दूसरी ओर, बीजेपी ने भी 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार के बारे में चुप्पी साध रखी है. चुनाव के नतीजे 21 जुलाई को घोषित किए जाएंगे. महात्मा गांधी के पड़पोते गोपालकृष्ण गांधी (77) ने एक बयान में कहा कि विपक्षी दलों के कई नेताओं ने राष्ट्रपति पद के आगामी चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार बनने के लिए उनके नाम पर विचार किया जो उनके लिए सम्मान की बात है. गोपालकृष्ण गांधी ने कहा, ‘मैं उनका अत्यंत आभारी हूं लेकिन इस मामले पर गहराई से विचार करने के बाद मैं देखता हूं कि विपक्ष का उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए जो विपक्षी एकता के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति पैदा करे.’
गोपालकृष्म गांधी ने कहा, 'मुझे लगता है कि और भी लोग होंगे जो मुझसे कहीं बेहतर काम करेंगे इसलिए मैंने नेताओं से अनुरोध किया है कि ऐसे व्यक्ति को अवसर देना चाहिए. भारत को ऐसा राष्ट्रपति मिले जैसे कि अंतिम गवर्नर जनरल के रूप में राजाजी (सी राजगोपालाचारी) थे और जिस पद की सबसे पहले शोभा डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बढ़ाई.'
फारूक अब्दुल्ला और शरद पवार भी कर चुके हैं इनकार
पूर्व राजयनिक गोपालकृष्ण गांधी दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त के रूप में भी काम कर चुके हैं. इससे पहले, विपक्षी दलों के नेताओं ने 15 जून को बैठक की थी, जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवारों के रूप में शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला के नामों का प्रस्ताव रखा था. शरद पवार ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि वह आम लोगों की भलाई के लिए अपनी सेवा जारी रखते हुए खुश हैं. वहीं, फारूक अब्दुल्ला ने अनिच्छा जाहिर करते हुए कहा था कि वह केंद्र शासित प्रदेश (जम्मू कश्मीर) को वर्तमान महत्वपूर्ण मोड़ से आगे बढ़ाने में योगदान देना चाहते हैं.
विपक्षी दलों के संयुक्त उम्मीदवार का चयन एक कठिन कदम है क्योंकि क्षेत्रीय दलों के विविध विचारों से आम सहमति तक पहुंचना मुश्किल है. पिछले हफ्ते, शिवसेना ने गोपालकृष्ण गांधी और फारूक अब्दुल्ला की उम्मीदवारी को खारिज करने की मांग करते हुए कहा था कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अक्सर उनके नाम आते हैं. शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में कहा था कि फारूक अब्दुल्ला और गांधी विपक्षी दलों के गठबंधन में मजबूत बिंदु नहीं हैं और उनमें राष्ट्रपति चुनाव को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए जरूरी 'कद' की कमी है.
आपको बता दें कि राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त होगा और उनके उत्तराधिकारी अगले दिन पदभार ग्रहण करेंगे. राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को चुनाव होने हैं और वोटों की गिनती 21 जुलाई को की जाएगी.
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