डीएनए हिंदी: 2 अक्टूबर से देश के खेतों में फसलों को लहलहाने वाली उर्वरकों की बोरियों की एक नई पहचान होगी. कंपनी कोई भी होगी मगर अब इनके दो तिहाई हिस्से पर ‘भारत’ ब्रांड नेम और प्रधानमंत्री भारतीय जनउर्वरक परियोजना (PMBJP) का लोगो(Logo) होगा. वैश्विक कारणों से दुनिया में उर्वरकों की कीमतों में बेतहाशा इजाफा हुआ है. ऐसे में आयात पर निर्भर भारत का उर्वरक सब्सिडी बिल इस साल 2 लाख करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान है.
अगर सब्सिडी या ग्रामीण इलाकों में लोकप्रिय सरकारी योजनाओं की बात की जाए तो उर्वरकों पर सब्सिडी का खाद्य सब्सिडी के बाद दूसरे नम्बर पर आता है. मौजूदा वित्त वर्ष 2023 में जहां खाद्य सब्सिडी 2.86 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है वहीं उर्वरकों की सब्सिडी भी 2.15 लाख करोड़ रुपये के पार हो जाएगी. खाद सब्सिडी पर खर्च सरकार की अन्य बाकी लोकप्रिय योजनाओं जैसे पीएम किसान सम्मान निधि, मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना से भी ज्यादा है.
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सरकार की किसानों में सबसे ज्यादा लाभ पहुंचाने वाले डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) योजना PM किसान सम्मान निधि में सरकार करीब 68,000 करोड़ रुपये खर्च करती है. वहीं इससे तीन गुना ज्यादा लागत वाली उर्वरक सब्सिडी के बारे में लाभ लेने वाले वर्ग में जागरुकता नहीं है.
बहुप्रचारित MSP पर फसल खरीदने में सरकार ने पिछले साल कुल 2.37 लाख करोड़ रुपए का खर्च किए थे. इस साल उर्वरकों पर सब्सिडी बिल के 2.15 लाख करोड़ हो जाने का अनुमान लगाया गया है. ऐसे में सरकार उर्वरकों पर दी जा रही सब्सिडी की जानकारी किसानों के बीच भी पहुंचाना चाहती है. नए ब्रांड और लोगो से सरकार को अपनी सब्सिडी का प्रचार करने में मदद मिलेगी.
उर्वरकों की मांग में लगातार बढ़ोतरी होती रही है लेकिन पिछले कुछ सालों से उर्वरकों के दामों में बेतहाशा इजाफा होने से भारत का फर्टीलाईजर सब्सिडी बिल तेजी से बढ़ा है. साल 2014-15 से 2019-20 तक खाद सब्सिडी पर कुछ ज्यादा अंतर नहीं आया लेकिन कोविड के बाद खाद की कीमतों में बढ़ोतरी होने से सब्सिडी पर खर्च तेजी से बढ़ा है. साल 2019-20 में जहां खाद सब्सिडी पर 83,468 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. चालू वित वर्ष 2022-23 में ये बढ़कर 2.15 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच जाने का अनुमान लगाया गया है.
भारत उर्वरकों पर सब्सिडी के दो मॉडल अपनाता है. पहला यूरिया के लिए जिसमें देश की सभी निजी और सरकारी कंपनियां एक तय कीमत पर अपने प्रोडक्ट बेचती हैं. यूरिया की कीमत इसकी लागत का महज 10 से 20 प्रतिशत ही ली जाती है बाकी सरकार कंपनियों को सब्सिडी के रुप में देती है.
इसके अलावा बाकी उर्वरकों जैसे डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) और म्यूरिएट ऑफ पोटॉश (MOP) को बेचने की कीमत आधिकारिक रुप से सरकार तय नहीं करती. मगर इन पर भी भारी सब्सिडी दी जाती है.
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सरकार का यह है तर्क
सरकार ने उदाहरण दिया कि IFFCO/KRIBHCO अपने उत्पाद यूपी में बनाती है और राजस्थान में बेचती है. एक और कंपनी चंबल फर्टिलाईजर (CFCL) का उर्वरक प्लांट राजस्थान में है और कंपनी के उत्पाद यूपी में बिकते हैं. राष्ट्रीय कैमिकल फर्टिलाईजर (RCF) कंपनी महाराष्ट्र में NPK बनाती है और पश्चिम बंगाल में बेचती है.
नई उर्वरकों ब्रांडिंग के फैसले के पीछे एक तर्क ये भी दिया गया है कि देश में अलग-अलग ब्रांड और मार्केटिंग के चलते देश के किसी एक हिस्से में एक खास ब्रांड का उर्वरक की ज्यादा मांग होती है जिसके कारण कई बार किसानों को किसी ब्रांड विशेष का उर्वरक उपलब्ध नहीं हो पाता है. इससे समय,धन और फसल तीनों का नुकसान होता है.
उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी, उर्वरकों के उत्पादन (Manufacturing) और वितरण (Distribution) दोनों पर दी जाती है. इस वक्त सरकार करीब 6,000 करोड़ से ज्यादा सिर्फ वितरण पर खर्च कर रही है. साल 2019 से पहले उर्वरक को फैक्टरी से बाजार तक लाने में करीब 900 से 1,000 किमी की दूरी तय करनी होती थी. साल 2020-21 में ये 700 से 750 किमी तक कम हो गई है. साल 2022-23 के लिए सरकार का लक्ष्य है कि इस दूरी को कम करके 500 किमी तक ले आया जाए.
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देश की बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए देश को खाद्यान का उत्पादन लगातार बढ़ाना ही है. इसलिए देश में उर्वरकों की खपत भी लगातार बढ़ रही है. साल 2017-18 में जहां 529 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता थी जो कि साल 2021-22 में 20 प्रतिशत बढ़कर 640 लाख मीट्रिक टन हो गई.
मगर देश के लिए चिंता की बात ये है कि देश में खाद का उत्पादन नहीं बढ रहा है. जहां साल 2017-18 में भारत में 375 लाख मीट्रिक टन खाद का उत्पादन कर रहा था. पांच साल के बाद इसमें मामूली सुधार हुआ, 2021-22 में भारत का उत्पादन 383 लाख मीट्रिक टन तक ही पहुंच पाया.
इस बीच भारत का आयात लगातार बढ़ता गया है. जहां साल 2017-18 में भारत ने 154 लाख टन खाद का आयात किया. वहीं साल 2021-22 में भारत का आयात 257 लाख टन तक पहुंच गया है. पिछले पांच सालों में जहां भारत का घरेलू उत्पादन बिल्कुल नहीं बढ़ा, वहीं आयात में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. मौजूदा आकड़ों तक भारत का आयात बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच चुका है.
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