'कोई वैज्ञानिक आधार नहीं', मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर पर रोक लगाने से HC का इनकार

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 28, 2023, 11:36 PM IST

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गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण के स्तर को मापने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका है, लेकिन याचिकाकर्ता ऐसा कोई डेटा नहीं दिया है कि जिससे साबित हो सके कि मस्जिद में लाउडस्पीकर से अजान देने पर ध्वनि प्रदूषण होता है.

डीएनए हिंदी: गुजरात हाईकोर्ट ने मस्जिदों में अजान या इबादत के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने संबंधी एक जनहित याचिका को पूरी तरह से मिथ्या धारणा पर आधारित करार देते हुए इसे मंगलवार को खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी. मायी की पीठ ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि क्या वह आश्वसन दे सकता है कि किसी मंदिर में आरती के दौरान घंटियों और घड़ियाल का शोर बाहर नहीं आएगा. 

दरअसल, बजरंग दल नेता शक्तिसिंह झाला की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया था कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर के माध्यम से अजान के कारण होने वाला ‘ध्वनि प्रदूषण’ लोगों खासकर बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और अन्यथा असुविधा का कारण बनता है. उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिका में दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. अदालत ने बताया कि अजान दिन के अलग-अलग घंटों में एक बार में अधिकतम दस मिनट के लिए की जाती है.

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हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि हम यह समझने में असफल हैं कि सुबह लाउडस्पीकर के माध्यम से अजान देने वाली मानव आवाज ध्वनि प्रदूषण पैदा करने के स्तर (डेसीबल) तक कैसे पहुंच सकती है, जिससे बड़े पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है. अदालत ने कहा, 'हम इस तरह की जनहित याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं. यह वर्षों से चली आ रही आस्था और प्रथा है जो पांच-दस मिनट के लिए होती है.’ 

क्या मंदिर के घंटे की ध्वनि बाहर नहीं आएगी?
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, ‘आपके मंदिर में ढोल और संगीत के साथ सुबह की आरती भी सुबह तीन बजे शुरू होती है. क्या आप कह सकते हैं कि घंटे और घड़ियाल का शोर केवल मंदिर परिसर में ही रहता है, मंदिर के बाहर नहीं फैलता?’ अदालत ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण के स्तर को मापने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका है, लेकिन याचिका में यह दिखाने के लिए कोई डेटा नहीं दिया गया है कि 10 मिनट की अजान से ध्वनि प्रदूषण होता है. (PTI इनपुट के साथ)

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