डीएनए हिंदीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सोमवार को होनी वाली अहम सुनवाई टल गई है. केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से और वक्त मांगा है. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अभी सरकार में उच्च स्तर पर विमर्श जारी है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 12 दिसंबर तक का वक्त दिया. अब इस मामले में जनवरी के पहले हफ्ते में सुनवाई होगी.
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है?
इस कानून को 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया था. इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता. इस कानून में कहा गया कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है. कानून के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा.
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क्यों बनाया गया कानून?
दरअसल 1991 के दौरान राम मंदिर का मुद्दा काफी जोरों पर था. देश में रथयात्रा निकाली जा रही थी. राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे. इससे पहले 1984 में एक धर्म संसद के दौरान अयोध्या, मथुरा, काशी पर दावा करने की मांग की गई थी. इन्हीं मुद्दों को लेकर सरकार पर जब दवाब बढ़ने लगा तो इसे कानून को लाया गया.
कानून में किन-किन बातों का है प्रावधान?
कानून में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति इन धार्मिक स्थलों में किसी भी तरह का ढांचागत बदलाव नहीं कर सकता है. इसका मतलब ना तो इन्हें तोड़ा जा सकता है और ना ही नया निर्माण किया जा सकता है. कानून में यह भी लिखा है कि अगर ये सिद्ध भी हो जाए कि वर्तमान धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है. इसके अलावा धार्मिक स्थल को किसी दूरे पंथ से स्थल में भी नहीं बदला जाएगा.
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