डीएनए हिंदी: ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को झटका देते हुए उनकी पांचों याचिकाएं खारिज कर दी हैं. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मालिकाना हक विवाद के मुकदमों को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए सेशन कोर्ट को भी निर्देश दिया है. मुस्लिम पक्ष ने सेशन कोर्ट के सर्वे कराने के आदेश को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा है कि सेशन कोर्ट 6 महीने के अंदर इस विवाद पर अपना फैसला देगी. साथ ही, उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि अगर निचली अदालत को परिसर के किसी भी हिस्से में सर्वे की जरूरत महसूस होती है तो उसे कराने का निर्देश दे सकती है.
ज्ञानवापी केस में 8 दिसंबर को ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था. केस में मुस्लिम पक्ष की ओर कुल 5 याचिकाएं दाखिल की गई थीं जिनमें से 3 याचिकाएं एएसआई सर्वे के खिलाफ थीं जबकि दो याचिकाएं सिविल वाद की पोषणीयता के आधार पर थीं. हालांकि, कोर्ट ने इन सबको खारिज कर दिया है और निचली अदालत को भी पूरे विवाद पर 6 महीने में फैसला देने का निर्देश दिया है.
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ज्ञानवापी परिसर का यह है पूरा विवाद
हिंदू पक्ष के वादी के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर का एक हिस्सा है. परिसर में शिवलिंग समेत कई ऐसे प्रतीक हैं जो इसकी गवाही देते हैं कि यहां मूल रूप से मंदिर ही है. हालांकि, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का तर्क यह है कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम द्वारा निषिद्ध है. इस पर किसी और तरह का दावा नहीं किया जा सकता है. इस घटना पर राजनीतिक विवाद भी हो रहा है और लोकसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है.
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट या पूजा स्थल अधिनियम18 सितंबर, 1991 को संसद से पारित कर लागू किया गया था. यह एक्ट, किसी भी पूजा स्थल में बदलाव करने पर रोक लगाता है. मुस्लिम पक्ष ने इसी एक्ट का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. बता दें कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी इस केस पर कह चुके हैं कि ज्ञानवापी को मस्जिद कहना ठीक नहीं है. यह परिसर काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है.
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