Places of Worship Act को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, जानें पूरा मामला

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 29, 2022, 07:18 AM IST

सुप्रीम कोर्ट

Places of Worship Act: अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने इस कानून का हवाला देते हुए टिप्पणी की थी. ज्ञानवापी मामले के बाद एक बार फिर इस मामले में बहस शुरू हो गई है.  

डीएनए हिंदीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज यानी शुक्रवार को  पूजा स्थल कानून (Places of Worship Special Provisions Act, 1991) के कुछ प्राविधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होगी. इस माले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justices DY Chandrachud) और जस्टिस अनिरुद्ध बोस (Aniruddha Bose) की पीठ करेगी. इस मामले में 6 याचिकाएं दाखिल की गई है जिनमें एक याचिका प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की भी है. उसने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इस कानून का समर्थन किया और इसके खिलाफ दाखिल याचिकाओं में पक्षकार बनने की मांग है.

इन याचिकाओं पर होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan Thakur), स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती (Jeetendranand Saraswati), भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय (Chintamani Malviya), सेवानिवृत्त सेना अधिकारी अनिल काबोत्रा (Anil Kabotra), अधिवक्ता चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) और रुद्र विक्रम सिंह (Rudra Vikram Singh) की ओर से याचिकाएं दाखिल की गई हैं. 

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क्या है मामला 
इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून समानता, जीने के अधिकार और पूजा के अधिकार का हनन करता है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मार्च  2021 में 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट ( पूजा स्थल कानून) की वैधता का परीक्षण करने पर सहमति जताई थी. अदालत ने इस मामले में भारत सरकार को नोटिस जारी कर  उसका जवाब मांगा था. बीजेपी की ओर से वकील अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को खत्म किए जाने को लेकर याचिका दाखिल की है.  

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
इस कानून को 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया था. इस कानून के तहत 15 अगस्‍त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्‍थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्‍थल में नहीं बदला जा सकता. इस कानून में कहा गया कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है. कानून के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा. 

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क्यों बनाया गया कानून?
दरअसल 1991 के दौरान राम मंदिर का मुद्दा काफी जोरों पर था. देश में रथयात्रा निकाली जा रही थी. राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे. इससे पहले 1984 में एक धर्म संसद के दौरान अयोध्या, मथुरा, काशी पर दावा करने की मांग की गई थी. इन्हीं मुद्दों को लेकर सरकार पर जब दवाब बढ़ने लगा तो इसे कानून को लाया गया.   

कानून में किन-किन बातों का है प्रावधान?
कानून में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति इन धार्मिक स्थलों में किसी भी तरह का ढांचागत बदलाव नहीं कर सकता है. इसका मतलब ना तो इन्हें तोड़ा जा सकता है और ना ही नया निर्माण किया जा सकता है. कानून में यह भी लिखा है कि अगर ये सिद्ध भी हो जाए कि वर्तमान धार्मिक स्थल को इतिहास में किसी दूसरे धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था, तो भी उसके वर्तमान स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है. इसके अलावा धार्मिक स्थल को किसी दूरे पंथ से स्थल में भी नहीं बदला जाएगा. 

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