हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार संकट में थी. राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की जिसके बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार संकट में आ गई थी. यह सब ऐसे समय पर हो रहा था जब राहुल गांधी देश में नहीं थे. विक्रमादित्य सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और आसार ऐसे थे कि हिमाचल प्रदेश सरकार अब गिरी कि तब गिरी. ऐसे मामले में प्रियंका गांधी ने अहम भूमिका निभाई और न सिर्फ सरकार बचाई बल्कि पार्टी की टूट को भी रोक लिया. कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी के चलते ही विक्रमादित्य सिंह ने अपना इस्तीफा भी ले लिया और सुक्खू मुख्यमंत्री की कुर्सी भी बचा पाए.
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के लगभग एक दर्जन विधायकों ने सुखविंदर सिंह सुक्खू के खिलाफ बगावत कर दी थी. विक्रमादित्य ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कई वजहें गिनाईं और मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया. उनकी मां और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने पार्टी को कई नसीहतें दे डालीं. ऐसे में आनन-फानन में दिल्ली से डी के शिवकुमार, भूपेश बघेल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ऑब्जर्वर बनाकर भेजा गया.
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प्रियंका ने कैसी बचाई सरकार?
कहा जा रहा है कि इस पूरी बगावत के पीछे वीरभद्र सिंह के परिवार यानी उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य सिंह की अहम भूमिका रही. ऐसे में प्रियंका गांधी ने इन दोनों से बात की. साथ ही, वह शिमला भेजे गए पर्यवेक्षकों से लगातार संपर्क में रहीं. इस तरह उन्होंने विक्रमादित्य को इस बात के लिए भी राजी कर लिया कि वह अपना इस्तीफा वापस ले लेंगे. प्रियंका गांधी के इस तरह ऐक्टिव होने से बगावत रुक गई और ज्यादा विधायकों ने मुखरता नहीं दिखाई.
प्रियंका गांधी ने यह भी सुनिश्चित किया कि वीरभद्र सिंह के परिवार को ज्यादा विधायकों का समर्थन न मिले और वे पार्टी न तोड़ पाएं. साथ ही, विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने से उनकी बारगेनिंग पावर भी कम कर दी. प्रियंका ने खुद वीरभद्र सिंह के परिवार को संदेश दिया कि विक्रमादित्य पार्टी के भविष्य हैं तो वह पार्टी को तोड़ने, सरकार गिराने या फिर पार्टी से बाहर जाने के बारे में न सोचें.
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6 विधायकों की सदस्यता रद्द
बता दें कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ जाकर बगावत करने वाले 6 विधायकों की सदस्यता को विधानसभा के स्पीकर ने रद्द कर दिया है. इस तरह विधानसभा के सदस्यों की संख्या 62 पर आ गई है और फिलहाल सरकार सुरक्षित है. अब कम से कम 3 महीने के बाद ही कोई अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है.
विधायकों से बातचीत के बाद पर्यवेक्षकों ने भी बताया है कि सरकार पर अब कोई संकट नहीं है. साथ ही, यह भी तय हो गया है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू अपने पद पर बने रहेंगे. कांग्रेस पार्टी ने एक समन्वय समिति बनाने का फैसला किया है जो सरकार और पार्टी के बीच काम करेगी और सभी मुद्दों पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सहमति भी लेगी.
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