डीएनए हिंदी: हिजाब विवाद पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच से स्प्लिट जजमेंट दिया है. जिसके बाद अब यह मामला बड़ी बेंच को भेज दिया गया है. हिजाब विवाद पर आज फैसला सुनाते हुए जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक सरकार के सभी तरह के धार्मिक कपड़ों पर बैन लगाने वाले सर्कुलर को बरकरार रखा. वहीं दूसरे जज सुधांशु धुलिया ने हिजाब मामले से जुड़ी अपील स्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने अपने फैसले में अनिवार्य धार्मिक प्रथा की अवधारणा पर मुख्य रूप से जोर दिया है, जो विवाद का मूल नहीं है. उन्होंने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने गलत रास्ता अपनाया है. हिजाब पहनना अंतत: पसंद का मामला है. इससे कम या ज्यादा कुछ और नहीं. आइए आपको 10 पॉइंट्स में बताते हैं कैसे शुरू हुआ था हिजाब विवाद.
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- दिसंबर 2021 में उडुपी के एक कॉलेज की कुछ छात्राओं को हिजाब पहनने की वजह से क्लास में एंट्री नहीं दी गई. इसकी वजह उनके द्वारा कॉलेज यूनिफॉर्म का उल्लंघन बताया गया. मामले के बढ़ने पर एक ग्रुप कॉलेज प्रशासन के पास सेटेलमेंट के लिए पहुंचा लेकिन बातचीत के बाद कोई हल नहीं निकला.
- इस मामले में जल्द ही सियासी रंग ले लिया. जनवरी 2022 में चिकमगलूर में कुछ हिंदू छात्रों ने यह मांग की कि उन्हें भगवा शॉल में क्लास लेने की परमिशन दी जाए. ड्रेस कोड को लेकर राज्य भर के कई संस्थानों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया.
- इसके बाद कुछ मुस्लिम स्टूडेंट्स ने इस मामले को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर क दी. इस समूह ने कोर्ट से कहा कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है. इसे रोकना धर्म के आधार पर शत्रुतापूर्ण भेदभाव है. इनकी याचिका में यह भी कहा गया कि कोई भी कानून हिजाब में क्लास अटेंड करने पर रोक नहीं लगाता है और ऐसा करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
- हिजाब मामले पर बढ़ते विवाद के बीच कर्नाटक की सरकार ने 5 फरवरी को एक ऑर्डर जारी कर स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़ों पर बैन लगा दिया. इसके बाद हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई से तीन दिन पहले पूरे राज्य के स्कूल व कॉलेज तीन दिन के लिए एहतियात के तौर पर बंद कर दिए गए.
- कर्नाटक सरकार ने कहा कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है. सरकार ने यह भी कहा कि इस प्रथा को संवैधानिक नैतिकता और व्यक्तिगत गरिमा की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए, जैसा कि सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बताया था.
- 10 फरवरी को जारी किए गए एक अंतरिम ऑर्डर में हाईकोर्ट ने सभी छात्रों को उनके धर्म या विश्वास की परवाह किए बिना अगले आदेश तक भगवा शॉल, दुपट्टा, हिजाब, धार्मिक झंडे या पसंद करने से रोक दिया.
- कर्नाटक हाईकोर्ट के ऑर्डर के बाद याचिका दाखिल करने वाले समूह ने कक्षाओं में ईसाईयों द्वारा पहने जाने वाले क्रॉस और हिंदुओं द्वारा पहनी जाने वाली चूड़ियों का हवाला देते हुए भेदभाव का आरोप लगाया. उन्होंने शुक्रवार और रमजान के दौरान हिजाब की अनुमति देने की भी मांग की.
- 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि हिजाब इस्लामी आस्था में आवश्यक धार्मिक अभ्यास का हिस्सा नहीं है.
- इसके बाद यह मामला सुप्रीमकोर्ट पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट में हिजाब के समर्थन में 26 याचिकाएं दायर की गईं. मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कपड़ों चुनाव एक महिला छात्र के निजता के अधिकार का हिस्सा है.
- 10 दिनों की सुनवाई के बाद आज इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने बंटा हुआ फैसला सुनाया. अब इस मामले पर बड़ी बेंच सुनवाई करेगी.
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