डीएनए हिंदी: देश में INDIA बनाम BHARAT की बहस तेज हो गई है. सत्ता पक्ष तमाम तर्क दे रहा है कि भारत नाम तो देश के पूर्वजों ने दिया है और इंडिया नाम गुलामी का प्रतीक है. वहीं, विपक्ष का कहना है कि यह सब सिर्फ इसलिए हो रहा है कि मोदी सरकार विपक्षी गठबंधन से डर गई है और वह INDIA नाम से ही दूर भाग रही है. इस बीच चर्चाएं ऐसी भी हैं कि संसद के विशेष सत्र में इस संबंध में प्रस्ताव भी लाया जा सकता है. नाम बदलने में कानूनी पचड़े से ज्यादा गंभीर मुद्दा इस पर आने वाला खर्च होता है. एक छोटे से जिले में भी अगर जिले का नाम बदलना हो तो करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं, ऐसे में अगर देश का ही नाम बदलना हो फिर तो खर्च अभूतपूर्व होगा.
देश में तमाम संस्थाओं का नाम, देश की करेंसी, तमाम सड़कों, प्रतीकों और हर जगह भारत का नाम इंडिया ही लिखा जाता है. ऐसे में अगर सरकार यह चुनती है कि अब आधिकारिक नाम के तौर पर इंडिया के बजाय भारत का नाम किया जाएगा तो इन सभी जगहों पर नाम बदलना होगा. कम से कम उन जगहों पर तो नाम बिल्कुल ही बदलना होगा जो सरकारी हैं. सरकारी दस्तावेजों, सरकारी संस्थाओं और आधिकारिक संचार के माध्यमों में भी इस नाम को बदलना होगा. आइए समझते हैं कि यह सब करने में कितना खर्च आ सकता है.
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कितने का हो जाएगा खर्च?
वैश्विक स्तर पर भारत का नाम INDIA ही है. भारतीय संविधान में भले ही दोनों नाम हों लेकिन दुनिया भारत को इंडिया के नाम से ही जानती है. ऐसे में नाम बदलने के साथ-साथ इसकी ब्रैंडिंग भी करवानी होगी. इस बारे में आउटलुक इंडिया की एक रिपोर्ट का आकलन है कि इस काम के लिए भारत को लगभग 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं. बता दें कि हाल ही में भारत ने लगभग 600 करोड़ के खर्च में चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किया है यानी 14 हजार करोड़ में भारत ऐसे 23 मिशन भेज सकता है.
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इतने पैसों का अनुमान साउथ अफ्रीका के वकील डेरेन ऑलिवियर के एक फॉर्मूले से निकाया गया. उनका कहना है कि किसी कंपनी का औसत मार्केटिंग खर्च कुल रेवेन्यू के 6 प्रतिशत के आसपास होता है. इस हिसाब से भारत के लिए ब्रांडिंग का यह खर्च 14 हजार करोड़ होगा. साल 2018 में स्वेजीलैंड ने अपना नाम बदलकर इस्वातीनि कर दिया है. तब डेरेन का अनुमान था कि इस काम में 60 मिलियन डॉलर का खर्च आ सकता है. साल 2022-23 वित्तीय वर्ष में भारत का राजस्व 23.84 लाख करोड़ रुपये था.
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