Chhath Puja 2024: भारत और नेपाल की खुली सीमा पर छठ पर्व के दौरान दिखने वाली सांस्कृतिक एकता का एक अनोखा दृश्य है. दोनों देशों के नागरिक बिना किसी वीजा या पासपोर्ट के एक-दूसरे के यहां आजा सकते हैं और इस रिश्ते को 'बेटी और रोटी' के ऐतिहासिक संबंध के रूप में भी देखा जाता है. बताते चलें कि भारत और नेपाल की संस्कृति काफी मिलती-जुलती है. भारत के तमाम त्योहार नेपाल में भी बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं.
5 नवंबर से छठ पूजा पर्व की शुरुआत हो रही है और इस दौरान एक ऐसी नदी है जहां भारत और नेपाल दोनों देशों के लोग छठ पूजा बहुत धूमधाम से मनाते हैं. इस मैत्रीपूर्ण संबंध को निभाते हुए, हर साल छठ पर्व पर हजारों की संख्या में भारत और नेपाल के लोग साथ मिलकर यह पर्व मनाते हैं, जिससे भाईचारे का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत होता है.
छठ के दौरान मेले का आयोजन
छठ के दिन यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें दोनों देशों के हजारों लोग शामिल होते हैं. नदियों के तट पर सजाए गए घाट भारतीय और नेपाली संस्कृति के मेल का प्रतीक बन जाते हैं. यह आयोजन सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें दोनों देशों के लोग सदियों से भाईचारा और सांस्कृतिक एकता का परिचय देते आए हैं. छठ पूजा के अवसर पर लोग सूर्य भगवान और छठी मैया से प्रार्थना करते हैं कि दोनों देशों के लोग खुशहाल और समृद्ध रहें.
सीमा पर घाटों का निर्माण
सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा सीमा क्षेत्र के पास, झीम नदी के तट पर दोनों देशों के लोग छठ पूजा के लिए एकत्र होते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पर्व के लिए भारत और नेपाल के कई गांवों के लोग मिलकर घाट का निर्माण करते हैं. इस नदी के आस पास रहने वाले दोनों देशों के निवासी मिलकर घाट का मुआयना करते हैं, ताकि पर्व के दिन व्रतियों को किसी प्रकार की परेशानी ना हो. यह साझेदारी केवल धार्मिक गतिविधि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता और आपसी सहयोग की भावना को भी मजबूती देती है.
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प्राचीन परंपरा और आस्था का मेल
सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों का मानना है कि छठ पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह दो देशों की संस्कृतियों का ऐसा संगम है जो उनकी दोस्ती और आपसी विश्वास को और मजबूत बनाता है. चाहे भारतीय हों या नेपाली, सभी इस पर्व के दौरान एक साथ मिलकर अपनी आस्था और परंपराओं को संजोते हैं.
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