डीएनए हिंदी: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यहां कहा कि 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से भारत और चीन के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं. यह मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोर देते हुए कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LaC) पर अपने सैनिकों को इकट्ठा करने के लिए चीन द्वारा दिया गया कोई भी स्पष्टीकरण वास्तव में तर्कसंगत नहीं है. भारत लगातार कह रहा है कि पूर्वी लद्दाख से लगती सीमा पर हालात सामान्य नहीं है एवं एलएसी पर शांति एवं सौहार्द दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिए अहम है.
विदेश संबंध परिषद में भारत-चीन संबंधों के बारे में एक सवाल पर एस जयशंकर ने कहा कि अगर दुनिया के दो सबसे बड़े देशों के बीच इस हद तक तनाव है, तो इसका असर हर किसी पर पड़ेगा. 2009 से 2013 तक चीन में भारत के राजदूत रहे जयशंकर ने कहा, ‘आपको पता है कि चीन के साथ रिश्ते की खासियत ये है कि वे आपको कभी नहीं बताते कि वे ऐसा क्यों करते हैं. इसलिए आप अक्सर इसका पता लगाने की कोशिश करते रहते हैं और हमेशा कुछ अस्पष्टता रहती है.’
विदेश मंत्री ने कहा कि चीनी पक्ष ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए लेकिन उनमें से कोई भी वास्तव में मान्य नहीं है. भारत और चीन के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के कुछ स्थानों पर गत तीन साल से गतिरोध बना हुआ है जबकि कई दौर की राजनयिक और सैन्य स्तर की वार्ता के बाद कई स्थानों से सैनिक पीछे हटे हैं. जयशंकर ने कहा, ‘ऐसे देश के साथ सामान्य होने की कोशिश करना बहुत कठिन है जिसने समझौते तोड़े हैं. इसलिए अगर आप पिछले तीन वर्षों को देखें, तो यह सामान्य स्थिति नहीं है.’ उन्होंने कहा कि संपर्क बाधित हो गए हैं, यात्राएं नहीं हो रही हैं. हमारे बीच निश्चित रूप से उच्च स्तर का सैन्य तनाव है. इससे भारत में चीन के प्रति धारणा पर भी असर पड़ा है.’
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विदेश मंत्री ने क्यों याद किया 1962 का युद्ध?
जयशंकर ने कहा कि 1962 के युद्ध के कारण 1960 और 70 के दशक में धारणा सकारात्मक नहीं रही लेकिन जब हमने इसे पीछे छोड़ना शुरू कर दिया था तब यह हुआ. इसलिए मुझे लगता है कि वहां एक तात्कालिक मुद्दा है और प्रतीत होता है कि ये मसला अपेक्षा से ज्यादा लंबा खिंच सकता है. विदेश मंत्री ने दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को रेखांकित किया और कहा कि यह कभी आसान नहीं रहा. उन्होंने कहा कि 1962 में युद्ध हुआ था. उसके बाद सैन्य घटनाएं हुईं. लेकिन 1975 के बाद सीमा पर कभी भी लड़ाई में कोई हताहत नहीं हुआ था, 1975 आखिरी बार था.
उन्होंने कहा कि 1988 में भारत ने संबंधों को अधिक सामान्य किया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए. जयशंकर ने बताया कि 1993 और 1996 में भारत ने सीमा पर स्थिरता के लिए चीन के साथ दो समझौते किए, जो विवादित हैं. उन मुद्दों पर बातचीत चल रही है. इस बात पर सहमति बनी कि न तो भारत और न ही चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना एकत्र करेगा और अगर कोई भी पक्ष एक निश्चित संख्या से अधिक सैनिक लाता है, तो वह दूसरे पक्ष को सूचित करेगा. जयशंकर ने कहा कि उसके बाद कई समझौते हुए और यह एक ‘‘बहुत अनोखी स्थिति’’ थी जिसमें सीमा क्षेत्रों में दोनों तरफ के सैनिक अपने निर्धारित सैन्य अड्डों से बाहर निकलते, अपनी गश्त करते और अपने ठिकानों पर लौट आते थे.
लॉकडाउन के दौरान चीन ने सीमा पर की थी हरकत
उन्होंने कहा, ‘‘अगर उनके बीच कहीं टकराव हुआ, तो उनके आचरण के बारे में बहुत स्पष्ट नियम थे और आग्नेयास्त्रों का उपयोग निषिद्ध था. तो 2020 तक वास्तव में ऐसा ही था. 2020 में जब भारत अपने सख्त कोविड-19 लॉकडाउन के दौर से गुजर रहा था तब हमने देखा कि बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर बढ़ रहे थे. इन सबके बीच हमें वहां अपनी उपस्थिति बढ़ानी थी और जवाबी तैनाती करनी थी, जो हमने की और फिर हमारे सामने एक ऐसी स्थिति थी जहां हम स्वाभाविक रूप से चिंतित थे क्योंकि (दोनों देशों के) सैनिक अब बहुत करीब आ गए थे. हमने चीनियों को आगाह किया कि ऐसी स्थिति समस्याएं पैदा कर सकती है और फिर जून 2020 के मध्य में ऐसा ही हुआ.’
उन्होंने कहा कि भारत ने श्रीलंका, पाकिस्तान और अन्य स्थानों पर चीनी बंदरगाह गतिविधि या बंदरगाह निर्माण को देखा है. मैं कहूंगा कि पीछे अगर देखें तो तब की सरकारों ने नीति निर्माताओं ने इसके महत्व और भविष्य में इनके संभावित उपयोग को कमतर कर आंका. विदेश मंत्री ने कहा कि इसलिए भारत के नजरिये से मैं कहना चाहूंगा कि यह बहुत तार्किक है कि हम चीन की बृहद मौजूदगी के लिए तैयार हों जो पहले नहीं देखी गई थी. (इनपुट- भाषा)
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