सुप्रीम कोर्ट ने इस साल दिवाली से पहले एक बड़ा फैसला सुनाया है, जिससे हजारों विचाराधीन (Under consideration) कैदी अपने घर लौट सकेंगे. नए आदेश के हिसाब से पहली बार अपराध करने वाले कैदियों की रिहाई के लिए नए नियम लागू किए गए हैं. इसका मकसद उन कैदियों को दिवाली पर अपने परिवारों के साथ त्योहार मनाने का मौका देना है, जिन्होंने जेल में काफी समय बिताया है.
SC ने कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, यदि किसी विचाराधीन (Under consideration) कैदी ने अपने अपराध के लिए तय की गई अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा जेल में काट लिया हो, तो उसे रिहा किया जा सकता है. यह आदेश भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 479 को लागू करने के लिए दिया गया है. इसके तहत पहली बार अपराध करने वाले कैदियों की रिहाई पक्की की जाएगी. हालांकि बशर्ते उन्होंने अपनी सजा का एक तिहाई समय जेल में बिताया हो.
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जेल अधिकारियों को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधिकारियों को निर्देशित दिया है कि वो उन कैदियों को जमानत देने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएं, ताकि जो लोग इस नियम के तहत योग्य हैं, उन्हें जमानत मिल सके. अदालत ने यह भी कहा कि कैदियों की रिहाई के लिए आवेदन प्रक्रिया को दो महीने के अंदर पूरा किया जाए. इसके अलावा राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) को इन मामलों की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश करनी होगी.
गंभीर अपराधों पर राहत नहीं
हालांकि, जिन कैदियों पर गंभीर अपराध के आरोप हैं, उन्हें इस नियम के तहत कोई राहत नहीं मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया है कि लाभकारी प्रावधान (Supportive measure) सभी विचाराधीन कैदियों (Under consideration) पर लागू हो. चाहे उनकी गिरफ्तारी की तारीख कुछ भी हो. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि योग्य (eligible) कैदियों को इस दिवाली अपने परिवारों के साथ मनाने का मौका मिलना चाहिए.
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