डीएनए हिंदी: जम्मू-कश्मीर ने लेक्चरर जहूर अहमद भट का निलंबन रद्द कर दिया, जो संविधान के अनुच्छेद-370 के महत्वपूर्ण प्रावधानों को निरस्त करने के खिलाफ एक पक्ष के रूप में सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे. सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें उनके पद से निलंबित कर दिया गया था. कोर्ट ने इस मामले में कड़ा ऐतराज जताते हुए भट के निलंबन को गलत ठहराया था. कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से पूछा था कि अगर कोई अदालत में सुनवाई के लिए पेश होता है तो क्या उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकट रमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को लेक्चरर के निलंबन के मामले को देखने के लिए कहा था. बता दें कि श्रीनगर के जवाहर नगर स्थित सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में राजनीति शास्त्र के शिक्षक जहूर अहमद भट को 25 अगस्त को निलंबित कर दिया गया था. जम्मू-कश्मीर सीएसआर, जम्मू-कश्मीर सरकारी कर्मचारी (आचरण) नियम 1971, जम्मू-कश्मीर छुट्टी नियमों के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए यहां निदेशक स्कूल शिक्षा के कार्यालय से संबद्ध किया गया.
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CJI ने अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल को मामला सौंपा
जम्मू के स्कूल शिक्षा निदेशालय में कार्मिक अधिकारी विकास धर भगती ने एक आधिकारिक आदेश में कहा, ‘25 अगस्त के आदेश संख्या 251-जम्मू-कश्मीर (शिक्षा) (निलंबन और उसके बाद जम्मू में संलग्न करने का आदेश) को वापस लेने के परिणामस्वरूप राजनीति शास्त्र के वरिष्ठ लेक्चरर जहूर अहमद भट्ट को आज कार्यालय से मुक्त कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भट के निलंबन के मुद्दे पर गौर करने को कहा था.
एक अधिकारी ने कहा, जम्मू-कश्मीर सरकार ने निलंबन आदेश रद्द कर दिया है और भट को अपने मूल पोस्टिंग स्थान पर वापस रिपोर्ट करने के लिए आमंत्रित किया है. राजनीति विज्ञान के वरिष्ठ लेक्चरर जहूर अहमद भट का निलंबन अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान सुर्खियों में आया था.
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अनुच्छेद 370 के खिलाफ लेक्चरर भट ने दी थी दलील
सुप्रीम कोर्ट ने भट के निलंबन के बारे में चिंता व्यक्त की थी और संकेत दिया था कि इसे "प्रतिशोध" की कार्रवाई के रूप में देखा जा सकता है. अदालत के समक्ष अपनी हाजिरी के दौरान भट ने केंद्र सरकार के 2019 के फैसले के खिलाफ दलील दी थी, जिसने जम्मू और कश्मीर के खास दर्जे को रद्द कर दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया.
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