डीएनए हिंदी: कानपुर के महबूब मलिक की कहानी उन सभी लोगों के लिए मिसाल है जो सकारात्मक सोच के साथ जीवन को देखते हैं. अपनी जिंदगी में कमियों का रोना रोने के बजाय ऐसे लोग दूसरों के लिए भी राह आसान बनाने की कोशिश करते हैं. बचपन में महबूब मलिक को आर्थिक तंगी के चलते 5वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. तभी उन्होंने सोच लिया था कि खुद पढ़ नहीं सके तो क्या हुआ, गरीब बच्चों को पढ़ाई में हर संभव मदद करेंगे. शिक्षा के महत्व को महबूब बखूबी समझते हैं. आज वो अपनी चाय की दुकान से होने वाली कमाई का 80 प्रतिशत हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई में लगा देते हैं. उनकी कहानी ऐसे सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं.
हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो हमेशा अपने दुख और अभाव की ही कहानी कहते रहते हैं. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सीमित साधनों के बाद भी बड़ा हौसला रखते हैं. ऐसे लोग अपने साथ समाज और आसपास के लोगों की बेहतरी के लिए भी काम करने की कोशिश करते हैं. हमारे खास कार्यक्रम डीएनए में ऐसे ही एक हीरो कानपुर के महबूब मलिक की कहानी पेश की गई है जिनके बारे में जानकर सबको अच्छा लगेगा.
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बच्चों के लिए दान करते हैं अपनी कमाई
34 वर्षीय महबूब मलिक कानपुर में ही एक चाय की दुकान चलाते हैं. महबूब ने एक दिन देखा कि शहर के कुछ बच्चे तो यूनिफॉर्म में स्कूल जा रहे हैं लेकिन कई बच्चे ऐसे हैं जो दिनभर सिर्फ मजदूरी ही करते हैं. उन्होंने इस अंतर को कम करने की ठान ली और खुद ही आसपास के बच्चों को अपनी दुकान में पढ़ाना शुरू कर दिया. समय के साथ बच्चों की संख्या और लोगों का साथ दोनों बढ़ने लगे. वर्ष 2017 तक वो अकेले ही इन बच्चों का खर्च उठा रहे थे. जब बच्चे बढ़ने लगे तब इतने सारे बच्चों की जिम्मेदारी उठाना एक अकेले इंसान के लिए मुश्किल हो गया.
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12 शिक्षक मिलकर चला रहे हैं दो स्कूल
उन्होंने ‘मां तुझे सलाम सोशल फाउंडेशन’ नाम की एक संस्था बनाई और लोगों से मदद लेना शुरू किया. अब महबूब मलिक के इस फाउंडेशन के तहत, 12 शिक्षक मिलकर दो प्राइमरी स्कूल चला रहे हैं जिसके ज़रिए शहर की झुग्गी-बस्ती में रहने वाले 1500 बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है. बच्चे देश का भविष्य हैं और इसलिए इनको समाज से जोड़कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है. महबूब मलिक की यह कहानी बताती है कि एक इंसान की छोटी सी पहल भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है.
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