डीएनए हिंदी: भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल की लड़ाई हुए आज 24 साल हो गए हैं. भारत आज कारगिल विजय दिवस मना रहा है. इस दिन देश के उन वीर सपूतों को याद किया जाता है जिन्होंने देश की सरहद की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवा दी. कश्मीर पर शुरू से नजर बनाए बैठे पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में मौजूद कारगिल में हमला करके कश्मीर को जोड़ने वाली सड़क पर कब्जा जमाने और कश्मीर को भारत के अलग करने की साजिश रची थी. इन तमाम कोशिशों पर उसे पूरा भरोसा था कि भारतीय सेना जवाबी कार्रवाई नहीं कर पाएगी क्योंकि मुख्य रास्ते पर पाकिस्तान ने लगातार नजर बनाए रखी थी. यहीं से भारतीय सेना के जवानों ने ऐसा कौशल और बहादुरी दिखाई कि वे इतिहास में अपनी-अपनी कहानियां लिखकर अमर हो गए.
इस युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में कारगिल में ही कारगिल वार मेमोरियल मनाया जाता है. आज इस मौके पर शहीदों के परिवारों के साथ-साथ सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे भी कारिगल में मौजूद हैं. देश की सेना अपने उन वीर साथियों को याद कर रही है जो जान रहने तक सरहद पर सीना ताने खड़े रहे और जान गंवाकर भी दुश्मन को देश में घुसने नहीं दिया. यह दिन भारत के इतिहास के लिए बेहद अहम है क्योंकि अगर यहां पाकिस्तान के मंसूबे कामयाब हो जाते तो आज कश्मीर की तस्वीर कुछ और ही हो सकती थी.
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क्यों हुआ था कारगिल का युद्ध?
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान की नजर हमेशा के कश्मीर पर रही. आजादी के तुरंत बाद 1948 में, फिर 1965 में और फिर 1971 में मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान ने हार नहीं मानी. 1999 की सर्दियों में उसने एक कोशिश और की. सर्दियों के समय जब सेना ऊंचे इलाकों से नीचे उतरती है ठीक उसी समय पाकिस्तान ने कारगिल, द्रास और बटालिक की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा लिया. अप्रैल-मई में जब भारतीय सेना ने चढ़ाई शुरू की तो उसके होश उड़ गए क्योंकि पाकिस्तान ने ऊपरी इलाकों से फायरिंग और हमले शुरू कर दिए.
देश की रक्षा के लिए भारत के जवानों ने करारा पलटवार किया. हालांकि, इस युद्ध में भारत को भी भारी नुकसान हुआ और हमारे 527 जवान और अफसर इस युद्ध में शहीद हो गए. मनोज पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा, नायब सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव, लांस नायक दिनेश सिंह भदौरिया, सुल्तान सिंह नरवरिया, मेजर एम सरावनन, मेजर राजेश सिंह, लांस नायक करन सिंह, राइफलमैन संजय कुमार और मेजर विवेक गुप्ता समेत उन तमाम बहादुर सिपाहियों ने इसी युद्ध में अपनी वीरता दिखाई थी.
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ऑपरेशन विजय ने पाकिस्तान को चटाई धूल
18 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को खदेड़ने का यह युद्ध लगभग दो महीने तक चला. पाकिस्तान ने दावा किया कि हमला करने वाले लोग पाकिस्तानी सैनिक नहीं कश्मीरी उग्रवादी हैं. हालांकि, लड़ाई के दौरान मिले गोला-बारूद और दस्तावेजों ने यह साबित किया कि यह पाकिस्तानी सेना ही थी. इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने भी बहादुरी से देश की रक्षा की. भारतीय सैनिकों ने न सिर्फ पाकिस्तान को वापस भेजा बल्कि मुश्किल हालात और पाकिस्तान की अडवांस पोजीशनिंग के बावजूद यह युद्ध जीतकर दिखाया.
कैप्टन विक्रम बत्रा की अगुवाई में भारतीय सेना टाइगर हिल की उस चोटी पर भी कब्जा जमाया जहां पहुंचना लगभग नामुमकिन लग रहा था. इस युद्ध पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. इस युद्ध ने पाकिस्तान को ऐसा आईना दिखाया कि फिर उसने आज तक युद्ध छेड़नी की कोशिश नहीं की. हालांकि, कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में अशांति फैलाने की उसकी आतंकी कोशिश आज भी बदस्तूर जारी है.
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