डीएनए हिंदी: राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस (Congress) की बहुमत की सरकार है. दोनों ही राज्यों में पार्टी दोहरे नेतृत्व से जूझ रही है. राजस्थान में अशोक गहलोत (Ashok Gehlog) और सचिन पायलट का झगड़ा है तो छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) और टी एस सिंहदेव का. कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही है. इसके बावजूद वह यह तय नहीं कर पा रही है कि राज्य में उसकी अगुवाई कौन करे. एक तरफ पूर्व सीएम सिद्धारमैया (Siddharamaiah) हैं तो दूसरी तरफ कई मोर्चों पर कांग्रेस के संकटमोटक की भूमिका निभाने वाले डी. के शिवकुमार (DK Shivkumar). अगले साल यानी 2023 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन कांग्रेस की हालत पंजाब जैसी हो जा रही है. उसे भी यह डर है कि कहीं दो के झगड़े का फायदा तीसरा यानी बीजेपी न उठा ले जाए.
विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए दो शीर्ष नेताओं के बीच होड़ की वजह पार्टी के भीतर कई लोगों में असंतोष भड़कने का डर है. इस गुटबाजी के परिणामों को समझने वाले वरिष्ठ नेताओं और कांग्रेस नेताओं ने हिदायत के स्वर में कहा, 'पहले चुनाव जीतना अधिक महत्वपूर्ण है, फिर मुख्यमंत्री पद की बात आती है. पहले इस सेतु को पार करें.'
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ताकत दिखाने में लगे हैं सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार
सिद्धारमैया और शिवकुमार दोनों खुले तौर पर एक ही राय या भावना व्यक्त करते हैं, हालांकि उनके विश्वासपात्र और खेमे अपने-अपने नेता को (मुख्यमंत्री के तौर पर) पेश करने के लिए तैयार हैं, जिससे चीजें गड़बड़ हो जाती हैं. सिद्धारमैया के समर्थकों ने उनके 75 वें जन्मदिन पर 3 अगस्त को दावणगेरे में एक भव्य समारोह की योजना बनाई है, क्योंकि यह पार्टी के चुनावी अभियान से पहले होने वाला है. इस आयोजन को सिद्धरमैया के खेमे द्वारा उन्हें और उनके योगदान को प्रदर्शित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य चुनाव से पहले पार्टी के भीतर आलाकमान और उनके विरोधियों दोनों को एक संदेश भेजना है, जबकि कुरुबा नेता के 'अहिंदा' वोट आधार को भी मजबूत करना है.
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'अहिंदा' कन्नड़ भाषा का एक संक्षिप्त शब्द है जिसका उपयोग 'अल्पसंख्यातरु' (अल्पसंख्यक), 'हिंदुलिदावारु' (पिछड़ा वर्ग) और 'दलितरु' (दलित) के लिए किया जाता है. चीजों को हल्के में नहीं लेते हुए शिवकुमार ने रुख को अपने पक्ष में करने की कोशिश की. उन्होंने अपने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी का समर्थन करने के लिए प्रमुख वोक्कालिगा समुदाय, जिससे वह संबंधित हैं, का आह्वान करके सामुदायिक कार्ड खेला है.
दोनों नेता खेल रहे हैं जाति का कार्ड
आपको बता दें कि एसएम कृष्णा (जो बाद में मुख्यमंत्री बने) के बाद एकमात्र वोक्कालिगा केपीसीसी अध्यक्ष होने का जिक्र करते हुए शिवकुमार ने कहा कि दलित चाहते हैं कि उनका अपना कोई मुख्यमंत्री बने. हाल में उन्होंने कहा था, 'हर समुदाय का अपना मान-सम्मान है. हमारे समुदाय को साथ आने दें.' कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों और पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की राय है कि विधायकों के बीच शिवकुमार की तुलना में सिद्धारमैया के पक्ष में अधिक समर्थन है. वहीं, शिवकुमार गुट दृढ़ता से मानता है कि वह पार्टी अध्यक्ष हैं मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार भी हैं.
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सिद्धारमैया के बार-बार यह दावा करने के साथ कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा, उनका खेमा भी दृढ़ता से मानता है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद पर एक आखिरी मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि शिवकुमार की उम्र उनके पक्ष में है. शिवकुमार के समर्थकों का विचार है कि अब उनके नेता को मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि सिद्धारमैया 2013-18 के बीच पहले ही मुख्यमंत्री पद पर रह चुके हैं. खुद शिवकुमार ने हाल में कहा था, '2013 में भी जब कांग्रेस सत्ता में आई थी, उन्होंने (सिद्धरमैया के मुख्यमंत्री के रूप में) मुझे शुरू में मंत्री के रूप में नहीं लिया था. मैंने उनकी जीत के लिए काम किया था लेकिन मैं चुप रहा. हम सभी ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, तब मैंने प्रचार समिति के प्रमुख के रूप में काम किया था.'
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