डीएनए हिंदी: देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुंचता जा रहा है. दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में बुधवार को धुंध छाई रही और रात के दौरान तापमान में गिरावट और हवा नहीं चलने के कारण राजधानी की वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ श्रेणी में पहुंच गई. इस बीच केजरीवाल सरकार ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए ग्रैप-2 (GRAP-2) लागू कर दिया है. इसके तहत राजधानी में कई प्रतिबंध लगाए गए हैं. दिल्ली से गुजरने वाले वाहनों को अब ग्रैप-2 के नियमों का पालन करना होगा. इसके तहत आज यानी 1 नवंबर से राजधानी में सभी डीजल बसों पर लोक लगा दी गई है.
केजरीवाल सरकार के नए नियमों के मुताबिक, दिल्ली में एक नवंबर से बीएस-3 और बीएस-4 डीजल बसों को प्रवेश नहीं दिया जाएगा. सिर्फ एलेक्ट्रिक, सीएनजी और बीएस-6 डीजल बसों को ही राजधानी में प्रवेश की अनुमति मिलेगी. ये वाहन आसानी से आ जा सकेंगे. दिल्ली परिवहन विभाग के इस आदेश के बाद NCR के शहरों से चलने वाली लगभग 500 बसों की सेवाएं प्रभावित होंगी.
दिल्ली सरकार ने निर्देश दिया है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश करने वाली बसों को इलेक्ट्रिक, सीएनजी या डीजल में BS-6 मॉडल होना जरूरी है. यह नियम सरकारी से लेकर प्राइवेट बसों तक सब पर होगा. केजरीवाल सरकार ने राजधानी में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए केंद्रीय वायु गुणवत्ता आयोग के दिशा-निर्देशों पर यह आदेश जारी किया है. गौरतलब है कि दिल्ली में दूसरे राज्यों , उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान समेत अन्य राज्यों से रोजाना 4500 से अधिक बसें आती जाती हैं. इनमें 500 बसें सिर्फ एनसीआर से संचालित होती हैं.
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बॉर्डर पर होगी चेकिंग
दिल्ली परिवहन विभाग ने कहा कि राजधानी के सभी बॉर्डर पर 1 नवंबर से ट्रांसपोर्ट विभाग की टीमें चेकिंग करेंगी. बॉर्डर से सिर्फ इलेक्ट्रिक, CNG और बीएस-6 डीजल बसों को ही दिल्ली में प्रवेश करने की इजाजत दी जाएगी. बस अड्डा और उन जगहों पर भी चेकिंग की जाएगी जहां से प्राइवेट बस ऑपरेटर बसों का संचालन करते हैं. विभाग ने राजधानी के अलग-अलग बॉर्डर पर 18 टीमों को तैनात किया है. इसके अलावा दिल्ली में पटाखा चलाने पर भी पांबदी लगाई गई है.
प्रदूषण के स्तर को कम करने की कोशिश के तहत केंद्र ने अप्रैल 2020 में घोषणा की थी कि भारत में बेचे जाने वाले सभी वाहनों को भारत स्टेज-6 (बीएस6) उत्सर्जन मानकों के अनुरूप होना चाहिए. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के एक विश्लेषण के अनुसार, राजधानी में 1 नवंबर से 15 नवंबर तक प्रदूषण चरम पर होता है, क्योंकि इस समय पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़ जाते हैं.
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पराली जलानों के मामलों में आई कमी
सीएक्यूएम के मुताबिक, 15 सितंबर से 29 अक्टूबर के बीच की अवधि में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के अलावा राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एनसीआर क्षेत्रों में खेत में पराली जलाने की संचयी संख्या 2022 की 13,964 से घटकर 2023 में 6 391 हो गई. पंजाब में इस साल 45 दिनों की इस अवधि के दौरान पराली जलाने की 5,254 घटनाएं हुईं, जबकि 2022 में 12,112 और 2021 में 9,001 ऐसी घटनाएं हुईं थीं. हरियाणा में इस साल 45 दिनों की अवधि के दौरान पराली जलाने के 1,094 मामले दर्ज किए गए, जो 2022 में 1,813 और 2021 में 2,413 से काफी कम हैं. पंजाब सरकार का लक्ष्य इस सर्दी के मौसम में पराली जलाने की घटनाओं को 50 प्रतिशत तक कम करना और छह जिलों में पराली जलाने की प्रथा को खत्म करना है.
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