DNA TV Show: कोटा उम्मीदों से भरे बच्चों के लिए बन रहा कब्रगाह, डराने वाले हैं ये आंकड़ें
Kota Suicide
Kota Suicide Case: सपनों का शहर कोटा सूसाइड सिटी बनता जा रहा है. अब पानी सिर के ऊपर जा चुका है और अब ये स्थिति एंटी सूसाइड फैन लगाने जैसे उपायों से नहीं बदलेगी. इसके लिए अब पूरे सिस्टम को ही बदलना होगा.
डीएनए हिंदी: बीते रविवार को कोटा में सिर्फ़ चार घंटों के अंदर दो छात्रों ने मौत को गले लगा लिया. महज 16 या 17 वर्ष के ये छात्र डॉक्टर बनने का सपना लेकर कोटा आए थे और नीट (NEET) की तैयारी कर रहे थे. शुरुआती जांच के अनुसार ये छात्र पढ़ाई में औसत थे और इसलिए प्रतिबंध के बावजूद कोचिंग संस्थान ने इन्हे रविवार को टेस्ट के लिए बुलाया था. टेस्ट में ये छात्र बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके और इसी दबाव में आकर उन्होने अपनी जान दे दी. बीते हफ़्ते जब कोटा प्रशासन ने कोटा के हर हॉस्टल और कोचिंग संस्थान में एंटी सूसाइड फैन लगाने का आदेश दिया था, तो इसे बेहद क्रांतिकारी फैसला बताया गया था. दावा किया गया था कि इससे आत्महत्या के मामलों में कमी आएगी और छात्रों की जान बचाई जा सकेगी.
कोटा की घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार है?
हालांकि प्रशासन का ये शॉर्टकट कुछ दिनों में ही फेल हो गया क्योंकि इस बार जान देने वाले छात्रों ने ख़ुदकुशी के दूसरे रास्ते चुन लिए. कोटा में पंखे बदलने से ज़्यादा ज़रूरी है हालात बदलना. छात्रों के लिए ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए, जहां कामयाबी के साथ असफलता के लिए भी जगह हो. जहां परीक्षा में फेल होने पर सब कुछ ख़त्म होना न समझ लिया जाए.अफसोस है कि सिस्टम हालात बदलने की जगह पंखे ही बदलता रहा और नतीजा ये हुआ कि चार घंटों के अंदर दो छात्रों ने अपनी जान दे दी. जाहिर है कि सरकारी फाइलों में ये मौतें भी आत्महत्या के नए आंकड़ों के रूप में दर्ज हो जाएगी और जल्दी ही भुला भी दी जाएंगी. सिर्फ़ 15 या 16 वर्ष के बच्चों का इस तरह मौत को गले लगाना, सिर्फ़ आत्महत्या तो नहीं है. यह क्रूर तरीक़े से की गई हत्याएं हैं. ऐसी हत्याएं जिसका जवाबदेह कोई नहीं और न ही कोई ये जानता है कि इन बेवजह मौतों का सिलसिला कब रुकेगा. आपको कोटा से हमारी ये रिपोर्ट ज़रूर देखनी चाहिए, ताकि आप भी उन परिस्थितियों को महसूस कर सकें जहां कामयाबी का कॉम्पिटिशन तो है, लेकिन पिछ़ड़ने वालों के लिए कोई प्लैटफॉर्म नहीं है.
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16 वर्ष के अविष्कार अहमदनगर से कोटा अकेले नहीं आए थे. अपने साथ सपनों की गठरी भी साथ लाए थे. ये गठरी साल दर साल इतनी भारी होती गई कि उसके बोझ तले अविष्कार ही नहीं उनकी ख़्वाहिशें और उम्मीदें भी कुचलती चली गईं. आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था. 16 साल के एक हंसते खेलते लड़के ने बेवजह मौत को गले लगा लिया. अविष्कार बीते तीन सालों से कोटा में रह कर नीट की तैयारी कर रहे थे. रविवार को अपने कोचिंग संस्थान में टेस्ट देने आए थे लेकिन टेस्ट ख़त्म होने के पांच मिनट पहले ही वो एक्ज़ाम रूम से बाहर निकले और दौड़ते हुए कोचिंग की छत पर पहुंच कर वहां से छलांग लगा दी.
इस हादसे के कुछ घंटे के भीतर ही बिहार के आदर्श ने भी मौत को गले लगा गया. आदर्श 4 महीने पहले ही कोटा आए थे और वहां अपने भाई-बहन के साथ नीट की तैयारी कर रहे थे. आदर्श रविवार दोपहर टेस्ट देकर लौटे. भाई-बहन के साथ खाना खाया और फिर कमरे में जाकर फांसी लगा ली.भाई-बहन को शक हुआ तो दोनों ने दरवाज़ा तोड़कर उसे अस्पताल पहुंचाया लेकिन तब तक उसकी जान जा चुकी थी. जानकारी के अनुसार आदर्श कोचिंग के मॉक टेस्ट में लगातार पिछड़ रहा था. कड़ी मेहनत के बाद भी वो 700 में 250 नंबर ही ला पा रहा था और जब रविवार को हुए टेस्ट में भी उसे निराशा ही हाथ लगी तो वो टूट गया.
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इस साल 24 बच्चे दे चुके हैं अपनी
अविष्कार और आदर्श कोटा फ़ैक्ट्री के पहले शिकार नहीं हैं. इस वर्ष अब तक 24 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं. यानी कोटा में औसतन हर महीने तीन छात्रों ने ख़ुदक़ुशी की है लेकिन महज चार घंटों के अंदर हुई इन दो मौतों ने कोटा ही नहीं पूरे देश को हिला कर रख दिया है. छात्रों पर प्रेशर बनाने वाले कोचिंग संस्थानों पर एक्शन की बात हो रही है. क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष सब एकजुट होकर कोचिंग संस्थानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
सरकार इतना तो जान ही चुकी है कि इन मौतों के पीछे कोटा के कोचिंग संस्थान और उनका लालच सबसे बड़ी वजह है. मर्ज़ की जड़ का पता चलने के बाद भी मौतों का ये सिलसिला कब रुकेगा, ये कोई नहीं जानता है.
डराने वाले हैं कोटा से आ रहे आंकड़े
दरअसल जिस तरह मुंबई को सपनों का शहर कहा जाता है उसी तरह इंजीनियर और डॉक्टर बनने का ख़्वाब देखने वाले छात्रों के लिए कोटा भी सपनों का शहर है. देश भर से लाखों छात्र हर वर्ष कोटा आते हैं ताकि वो अपने ही नहीं अपने घरवालों के ख़्वाब भी पूरे कर सकें. कई बार इन सपनों का बोझ उनका दम घोंट देता है और वो ज़िन्दगी के आगे सरेंडर कर देते हैं.
- पुलिस रिकॉर्ड्स के अनुसार कोटा में पिछले एक दशक में 120 छात्रों ने सुसाइड किया है
- वर्ष 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या की
- वर्ष 2019 में 18
- वर्ष 2018 में 20 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया
- इसी तरह वर्ष 2017 में 17 छात्रों ने आत्महत्या की.
- वर्ष 2016 में 18
- 2015 में भी 18 बच्चों ने परीक्षा या Result के दबाव में आकर ख़ुदकुशी कर ली...
- वर्ष 2023 ख़त्म भी नही हुआ है और इस वर्ष अगस्त तक 24 छात्र अपना जीवन समाप्त कर चुके हैं
ये वो आंकड़े हैं जो सरकारी फ़ाइलों में दर्ज हैं लेकिन कोटा में उन छात्रों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता जो मानसिक त्रासदी से गुजर रहे हैं. कभी पढ़ाई का दबाव तो कभी पैरेंट्स और परिवार की उम्मीदों के बोझ तले दबकर ये बच्चे इतना टूट जाते हैं कि उनके लिए हालात का सामना करने की जगह मौत को गले लगाना ज़्यादा आसान नज़र आता है. ऐसा भी नहीं है कि राजस्थान सरकार इस मर्ज़ की वजह नहीं जानती. अगर नहीं जानती तो राजस्थान सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास कोटा के कोचिंग संस्थानों को बंद करने की मांग नहीं कर रहे होते. उन्होने इन मौतों के लिए कोटा के कोचिंग माफ़िया को जिम्मेदार ठहराया है.
कोटा में कोचिंग संस्थानों का जानलेवा कारोबार
कोटा में कोचिंग का एक भरापूरा कारोबार है और आंकड़ों के अनुसार कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर क़रीब 6 हज़ार करोड़ रुपये का है. कोटा में हर वर्ष दो लाख से ज़्यादा बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने का ख़्वाब लेकर आते हैं. इंजीनियरिंग में दाख़िले के लिए JEE और मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए National Eligibility-cum-Entrance Test यानी NEET की तैयारी करते हैं. इसके लिए कोटा में कई दर्जन छोटे बड़े कोचिंग संस्थान हैं, जो छात्रों को सपने बेचते हैं.
प्रशासन की स्पष्ट गाइडलाइड है कि कोई भी कोचिंग संस्थान अपने विज्ञापन में दाख़िले की गारंटी का दावा नहीं करेगा. हमने अपनी पड़ताल में पाया था कि कोटा में कई ऐसे संस्थान हैं जो इस गाइडलाइन की खुले आम धज्जियां उड़ा रहे हैं. ये संस्थान छात्रों और उनके पैरेंट्स को कुछ ऐसे सपने दिखाते हैं जैसे एक बार अगर उनकी कोचिंग में दाख़िला ले लिया तो फिर बच्चे का इंजीनियर या डॉक्टर बनना तय है. फिर भले ही बच्चे की अपनी क्षमता या रुझान कुछ भी क्यों न हो. बाद में यही कोचिंग संस्थान, ऐसे बच्चों पर बेवजह का दबाव बनाते हैं. नंबर कम आने पर उन्हे शर्मिंदा किया जाता है और कुल मिला कर असफलता की पूरी ज़िम्मेदारी छात्रों पर डाल दी जाती है. कई मामलों में छात्र ये बोझ बर्दाश्त नहीं कर पाते है और नतीजे में हमें ऐसी दर्दनाक ख़बरें देखने को मिलती हैं...
राजस्थान सरकार ने जारी की है गाइडलाइन
ये तो सिर्फ़ एक गाइडलाइन थी जबकि राजस्थान सरकार कोटा में कोचिंग संस्थानों के लिए लंबी लिस्ट जारी कर चुकी है.
- नियम के अनुसार कोचिंग सेंटर को रविवार के दिन छुट्टी रखनी होगी..
-छुट्टी वाले दिन कोई टेस्ट नहीं लिया जाएगा.
- छात्रों के बीच में कोचिंग छोड़ने पर फीस रिफंड करनी होगी
- हर कोचिंग सेंटर में करियर काउंसलर होने चाहिए जो छात्रों को दूसरे करियर विकल्पों के बारे में भी सही सलाह दे सकें और उनका मार्गदर्शन कर सकें.
- इसके अलावा coaching के खिलाफ समस्या और शिकायत के लिए एक शिकायत पोर्टल भी बनाया जाना था.
ये गाइडलाइंस पिछले साल नवंबर में जारी की गई थीं लेकिन अगर इनका पालन हो रहा होता तो शायद रविवार के दिन दो छात्रों की जान नहीं जाती. चाहे महाराष्ट्र का अविष्कार हो या फिर बिहार का आदर्श. दोनों के कोचिंग संस्थानों ने गाइडलाइंस के बावजूद उन्हे रविवार को टेस्ट देने के लिए मजबूर किया था. हालांकि इस ख़बर के सामने आने के बाद प्रशासन की तरफ़ से अगले दो महीनों तक किसी भी प्रकार का टेस्ट या परीक्षा लेने पर रोक लगा दी गई है.
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़ों के अनुसार भारत में वर्ष 2020 में 12 हज़ार पांच सौ छब्बीस((12,526)) छात्रों ने आत्महत्या की थी जबकि अगले वर्ष यानी वर्ष 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 13 हज़ार ((13,000)) से भी ज़्यादा हो गया था. इस आंकड़े के अनुसार प्रतिदिन 35 छात्र मौत को गले लगा रहे हैं. यानी हर 41वें मिनट पर एक छात्र फ़ेल होने के डर से जान दे रहा है. ज़रा सोचिए कि यह तस्वीर उस भारत की है, जहां दुनिया के सबसे ज्यादा युवा है. इसी देश में फेल होने के डर से, सपने टूटने के डर से रोज़ाना इतनी बड़ी संख्या में छात्र आत्महत्या कर लेते हैं और कोटा भी उसी का एक हिस्सा है. आज ज़रूरत है कि हम आत्महत्या की समस्या का शॉर्टकट नहीं बल्कि इसका स्थायी इलाज ढूंढे.
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