Hijab Row: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- आप कोर्ट में जींस पहनकर आएंगे तो मना किया ही जाएगा

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Sep 05, 2022, 08:06 PM IST

कर्नाटक के इस विवाद में अब सुप्रीम कोर्ट 7 सितंबर को सुनवाई करेगा. सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब समर्थकों से यह भी सवाल किया कि क्या एक धर्मनिरपेक्ष देश में किसी सरकारी संस्थान में धार्मिक कपड़े पहनने की इजाजत दी जा सकती है?

डीएनए हिंदी: हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें स्कूल-कॉलेजों के अंदर हिजाब पहनने पर बैन लगाया गया था. शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि क्या एक धर्मनिरपेक्ष देश में आप यह कह सकते हैं कि एक सरकारी संस्थान में धार्मिक कपड़े पहने जा सकते हैं?

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अलग-अलग जगहों पर उन अलग-अलग ड्रेस कोड के पालन की आवश्यकता होती है, जिन्हें वहां के सिस्टम के हिसाब से लागू किया जाता है. जस्टिस हेमंत गुप्ता (Justice Hemant Gupta) और जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) की पीठ ने इसका उदाहरण भी दिया. 

पढ़ें- उड़ीसा, बिहार, झारखंड और यूपी का छात्र-टीचर अनुपात सबसे खराब, जानिए अपने राज्य का हाल

पीठ ने कहा कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक महिला वकील को जींस पहनकर आने के लिए टोक दिया गया था. आप गोल्फ कोर्स में जाते हैं तो वहां भी फिक्स ड्रेस कोड होता है. आप वहां ये नहीं कह सकते कि मैं अपनी पसंद की ड्रेस पहनूंगा. इसके साथ ही पीठ ने सुनवाई को 7 सितंबर तक के लिए टाल दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को दिया था कर्नाटक सरकार को नोटिस

इससे पहले 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया था. यह नोटिस उन याचिकाओं पर दिया गया था, जिनमें कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी.

पढ़ें- Artificial Intelligence क्यों है भारत के लिए ज़रूरी? जानिए, विदेश में कैसे हो रहा है AI का इस्तेमाल

पगड़ी धार्मिक वेशभूषा नहीं है

याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि इस मुद्दे में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं और     सवाल यह है कि क्या हेडस्कार्फ पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है? इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, सवाल यह नहीं है बल्कि सवाल यह हो सकता है कि क्या सरकार ड्रेस कोड रेगुलेट कर सकती है. इस पर धवन ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट में भी जज तिलक, पगड़ी पहनते रहे हैं. जस्टिस गुप्ता ने उन्हें टोकते हुए कहा कि पगड़ी एक गैर धार्मिक वस्तु है. खुद मेरे दादाजी इसे वकालत करते हुए पहनते थे. इसकी तुलना धर्म के साथ न करें. 

धवन ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पूरी दुनिया की नजर होगी, क्योंकि कई सभ्यताओं में हिजाब पहना जाता है. उन्होंने आगे कहा, पहले ड्रेस के रंग का हेडस्कार्फ पहनने का सुझाव दिया गया था, लेकिन अब छात्राओं को क्लास रूम में हेडस्कार्फ हटाने के लिए कहा जा रहा है. उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश असंगत करार दिए.

पढ़ें- कौन होते हैं लिंगायत? हिंदू धर्म से कितने हैं अलग, जानें पूरी डिटेल

सुप्रीम कोर्ट तय करे कि सरकार यूनिफॉर्म निर्धारित कर सकती है या नहीं

सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने टॉप कोर्ट से कहा कि बेंच को केवल यह तय करना चाहिए कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के तहत राज्य सरकार को यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार है या नहीं. उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के सामने यह मुद्दा उठा था कि क्या कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की धारा 133 (2) के अनुसार, छात्रों के लिए गवर्निंग बॉडी द्वारा तय यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य है? उन्होंने पीठ से पूछा कि क्या कोई संस्था कोई विशेष पोशाक पहनने के कारण छात्र को कक्षा में बैठने से रोक सकती है?

उन्होंने यूनिफॉर्म तय करने के सरकार के अधिकार पर सवाल उठाया और कहा कि अधिनियम और नियमों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. यदि कोई व्यक्ति यूनिफॉर्म पर अतिरिक्त चीज पहनता है तो भी यह यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं होगा. 

पढ़ें- भारत नहीं बल्कि इन देशों में टीचर्स को मिलती है सबसे ज्यादा सैलरी

दोनों जजों का भी मत अलग-अलग

हेडस्कार्फ पहनने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों के भी अलग-अलग मत हैं. जस्टिस धूलिया ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि चुन्नी पहनने की अनुमति है, इसलिए हेडस्कार्फ पहले से ही यूनिफॉर्म का हिस्सा है. इसे धार्मिक प्रथा नहीं कहा जा सकता है. इसके उलट जस्टिस गुप्ता ने कहा कि चुन्नी की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती, क्योंकि वह कंधे पर पहनी जाती है. 

पढ़ें- कार के पीछे वाली सीट बेल्ट लगाना क्यों है जरूरी? जानें क्या हैं नियम, लापरवाही ने ले ली इन हस्तियों की जान

राज्य ने कही अपने पक्ष में ये बात

राज्य की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने इसे स्कूल के अनुशासन से जुड़ा मामला बताया. इस पर अदालत ने व्यापक स्पष्टीकरण मांगा. इसके बाद कर्नाटक के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने कहा, हिजाब का विरोध शुरू होने के बाद कुछ छात्रों ने भगवा शॉल पहनना शुरू कर दिया. इससे अशांति फैलने का खतरा था. इसी कारण राज्य सरकार ने 5 फरवरी को धार्मिक चिह्न पहनने पर प्रतिबंध लगाया. 

पढ़ें- AP ECET 2022: एपी ईसीईटी काउंसलिंग का शेड्यूल जारी, ये हैं जरूरी डिटेल्स

उन्होंने कहा, राज्य सरकार ने कहीं भी यूनिफॉर्म तय नहीं की है. हमने यह नहीं कहा है कि हिजाब पहनो या नहीं पहनो. हमने केवल निर्धारित यूनिफॉर्म पहनने के लिए कहा है. यह आदेश खुशी से नहीं लिखा गया है. यूनिफॉर्म में क्या पहनना है, यह तय करने का अधिकार संस्थानों पर ही छोड़ा गया है. कई संस्थानों ने प्रतिबंध लगाया है. इस पर कोर्ट ने पूछा कि क्या अल्पसंख्यक संस्थानों में हिजाब पहनने का अधिकार होगा? एडवोकेट जनरल ने कहा कि यह संस्थान ही तय करेगा. इसके बाद पीठ ने सुनवाई को 7 सितंबर की दोपहर 2 बजे तक स्थगित कर दिया.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

karnataka news Hijab Ban hijab controversy Supreme Court high court