डीएनए हिंदी: जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में आतंकियों के नरसंहार का शिकार हुए कश्मीरी पंडितों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ती जा रही है. करीब 19 साल पहले हुए नंदीमर्ग नरसंहार मामले को भी जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट (Jammu and Kashmir Highcort) ने दोबारा खोलने का आदेश दिया है.
पुलवामा (Pulwama) में हुए इस नरसंहार (Nandomarg Massacre) में 24 कश्मीरी पंडितों को सेना की वर्दी पहनकर आए आतंकियों ने एक लाइन में खड़े करके गोली मार दी थी. शहीद-ए-आजम भगत सिंह के शहादत दिवस 23 मार्च के दिन साल 2003 में इस नरसंहार को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने अंजाम दिया था.
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द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files) के अभिनेता अनुपम खेर (Anupam Kher) ने साल 2013 में इस मामले को ट्वीट के जरिए उठाया था.
मरने वालों में थे 2 साल के बच्चे से 64 साल के बुजुर्ग तक
इस नरसंहार में मारे गए कश्मीरी पंडितों में 11 पुरुष, 11 महिलाओं के साथ ही 2 बच्चे भी शामिल थे, जिनमें से एक की उम्र महज 2 साल थी. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, सेना का वर्दी में आए आतंकी अपने साथ नामों की लिस्ट लाए थे. उन्होंने नाम बोल-बोलकर एक-एक कश्मीरी पंडित की छंटनी की और इसके बाद उन्हें एक लाइन में खड़े करके गोली मार दी.
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि इस नरसंहार में पहले 22 कश्मीरी पंडित मारे गए. जब आतंकी चलने लगे तो बच्चे रोने लगे. इस पर आतंकियों ने उन्हें भी गोली मार दी. मरने वालों में 2 साल के बच्चे से लेकर 70 साल तक की बुजुर्ग महिला शामिल थी. इनमें से एक दिव्यांग भी था. आतंकी इन सभी कश्मीरी पंडितों के घरों से ज्वैलरी और नकदी भी लूट ले गए थे.
इस नरसंहार का मुकदमा शोपियां (Shopian) के जैनापोरा थाने में IPC की धारा 302, 450, 395, 307, 120-बी, 326, 427 RPC, 7/27 आर्म्स एक्ट और धारा 30 के तहत दर्ज किया गया था.
क्या कहा जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने करीब 8 साल से बंद पड़े इस मुकदमे की सुनवाई फिर से शुरू करने का आदेश दिया है. जस्टिस संजय धर (Justice Sanjay Dhar) ने इस केस को दोबारा खोलने की सुनवाई के दौरान कहा, इस केस के लंबित रहने के दौरान अभियोजन ने ट्रायल कोर्ट से आयोग के जरिए गवाहों के बयान लेने की अनुमति मांगी थी, क्योंकि ये गवाह कश्मीर छोड़ चुके थे और डर के कारण शोपियां में निचली अदालत के सामने पेश होने से हिचक रहे थे.
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जस्टिस धर ने आगे कहा, यह आवेदन शोपियां के प्रिंसिपल सेशंस जज ने 9 फरवरी, 2011 को खारिज कर दिया. उनके इस फैसले को अभियोजन पक्ष ने हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिविजन पिटिशन के जरिए चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने भी 21 दिसंबर 2011 को इस याचिका को बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया था.
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राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन वह भी खारिज हुई
जस्टिस धर ने आगे कहा कि साल 2014 में राज्य सरकार ने इस फैसले को हाईकोर्ट की बड़ी बेंच में चुनौती दी. राज्य सरकार ने मामले में नए सिरे से सुनवाई के साथ ही इसे जम्मू की किसी अदालत में ट्रांसफर करने की मांग की. राज्य सरकार की दलील थी कि इससे बाहर चले गए गवाह बिना डर के पेश हो पाएंगे, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया.
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इसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर करीब 8 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को ही फैसला लेने का आदेश दिया. इस फैसले के आधार पर जस्टिस संजय धर ने अब मामले को दोबारा सुनने की याचिका मंजूर कर ली है. जस्टिस धर ने मामले की सुनवाई 15 सितंबर से करने की बात कही है.
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