Muslim Personal Law के तहत नाबालिग की शादी की इजाजत से सुप्रीम कोर्ट हैरान, हाई कोर्ट का फैसला जांचेगा

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 17, 2022, 11:27 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल मंगाई है. 

Supreme Court बेंच के सामने सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि क्या अदालत दंडात्मक प्रावधानों के खिलाफ आदेश दे सकती है?

डीएनए हिंदी: कोर्ट की तरफ से एक 16 साल की लड़की को शादी करने की इजाजत देने के मामले ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को भी हैरान कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) के उस फैसले का परीक्षण करने का निर्णय लिया है, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) का हवाला देकर हाई कोर्ट ने लड़की को अपनी पसंद से शादी करने की इजाजत दी थी. सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के इस फैसले को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) ने चुनौती दी थी. NCPCR की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार व मामले से जुड़े अन्य लोगों को नोटिस जारी किया. अगली सुनवाई की तारीख 7 नवंबर तय की गई है.

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शीर्ष अदालत ने कहा- इस मामले पर विचार जरूरी

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) की बेंच के सामने यह मामला NCPCR की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने उठाया. मेहता ने कहा, यह एक अहम मुद्दा है. हम लड़की को कोर्ट की तरफ से मिली सुरक्षा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ये सवाल है कि  क्या अदालत को कानून के दंडात्मक प्रावधानों के खिलाफ आदेश देने का अधिकार है? बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव को इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया और कहा कि यह कानून पर सवाल है, जिस पर विचार करने की जरूरत है. 

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हाई कोर्ट के फैसले से प्रभावित होंगे कानून

जस्टिस कौल के अलावा जस्टिस अभय एस. ओका (Justice Abhay S. Oka) की मौजूदगी वाली बेंच ने माना कि हाई कोर्ट के फैसले से कानून प्रभावित होंगे. बेंच ने कहा, हाई कोर्ट के फैसले का असर बाल विवाह पर लगे प्रतिबंध (Ban of child marriages) और पोक्सो एक्ट (POCSO Act) पर भी होगा. बेंच ने सवाल किया कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार कर रहा है, तो क्या किसी अदालत को इस पर फैसला सुनाना चाहिए? बेंच ने कहा, हम कह रहे हैं कि हम यह मुद्दा जांचेंगे, तो ऐसे में हाई कोर्ट इस पर कैसे फैसला कर सकती है? पहले हम देखेंगे कि एमिकस क्यूरी की क्या राय है? इसके साथ ही 7 नवंबर को अगली सुनवाई तय कर दी गई.

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जून में दिया था हाई कोर्ट ने फैसला

पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने 13 जून को अपने आदेश में पठानकोट निवासी एक मुस्लिम जोड़े को सुरक्षा दी थी. इस जोड़े में लड़की की उम्र 16 साल, जबकि युवक की उम्र 21 साल थी. जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की पीठ ने आदेश में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ किसी भी मुस्लिम लड़की की शादी पर लागू होता है. हाई कोर्ट ने सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला की पुस्तक 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' का हवाला अपने फैसले में दिया था, जिसके अनुच्छेद 195 के अनुसार, 15 साल की उम्र पूरी होने पर स्वस्थ दिमाग वाला हर मुसलमान विवाह कर सकता है.

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NCPCR ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. बाल आयोग का कहना है कि हाई कोर्ट के इस आदेश में अनिवार्य रूप से बाल विवाह की अनुमति की झलक मिल रही है, जो बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act (PCMA) 2006) का उल्लंघन है. साथ ही इससे प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act यानी POCSO Act) का भी उल्लंघन होने की बात कही है. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से बाल संरक्षण कानून में विवाह के लिए तय 18 साल की न्यूनतम उम्र की कंडीशन को हर हाल में लागू करना सुनिश्चित किए जाने की मांग की है.

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