Supreme Court ने बरी किया बच्ची से रेप-हत्या में फांसी पाने वाला आरोपी, बताया ये कारण

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Sep 28, 2022, 09:14 PM IST

शीर्ष अदालत ने कहा- गवाहों के बयान में गंभीर भिन्नता है, जिसे नजरअंदाज किया गया. पीड़ित को न्याय के लिए किसी दूसरे से अन्याय नहीं कर सकते.

डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने छह साल की बच्ची के साथ रेप करने के बाद उसकी हत्या के मामले को बेहद वीभत्स करार दिया, लेकिन इसके बावजूद इस मामले के आरोपी को आरोपों से बरी करते हुए रिहा करने का आदेश दिया है.  उत्तर प्रदेश के इस मामले में आरोपी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी गवाहों के बयान मेल नहीं खाते हैं. इस गंभीर अंतर्विरोध की ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने पूरी तरह अनदेखी की है. कोर्ट ने कहा, अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए अदालत किसी दूसरे को अन्याय का शिकार नहीं बना सकती.

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अभियोजन ने नहीं की सही जांच

जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने आरोपी के बेहद गरीब होने के बावजूद ट्रायल कोर्ट की तरफ से उसे वकील उपलब्ध कराने में देरी पर सवाल उठाया. साथ ही कहा कि अभियोजन ने मामले की सही तरीके से जांच नहीं की.

कोर्ट ने कहा, हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह 6 साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या का वीभत्स मामला है, लेकिन अभियोजन ने भी सही जांच नहीं कर पीड़िता के परिवार के साथ अन्याय किया है. बिना किसी सबूत के आरोपी पर चार्ज लगाकर अभियोजन ने उसके साथ भी अन्याय किया है. अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए कोर्ट किसी दूसरे को अन्याय का शिकार नहीं बनी सकती.

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आरोपी पर था भतीजी से रेप व हत्या का आरोप

आरोपी पर होली के दौरान अपनी करीब 6 साल की भतीजी को डांस और गाने की परफॉर्मेंस दिखाने के बहाने साथ ले जाने और फिर उसका रेप करने के बाद हत्या कर देने का आरोप था. ट्रायल कोर्ट ने उसे IPC की धारा 302 व 376 के तहत फांसी की सजा दी थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी आरोपी की अपील खारिज करते हुए सजा बरकरार रखी थी. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी.

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अपील में उठाए गए थे चार सवाल

आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी अपील में चार सवाल उठाए थे.  उन्होंने 3 सरकारी गवाहों की विश्वसनीयता पर विवाद, कोर्ट में FIR भेजने में पुलिस की 5 दिन की देरी का रिजल्ट, फोरेंसिक सबूत नहीं पेश कर पाना और IPC की धारा 313 के तहत पूछताछ करने के तरीके व उसके आधार पर दर्ज निष्कर्षों के प्रभाव का मुद्दा उठाया था. शीर्ष अदालत ने इस चारों मुद्दों को स्वीकार किया.

बेंच ने माना कि अभियोजन की तरफ से पेश कहानी और गवाहों के बयानों में कई विषमताएं हैं, जिससे गवाही पूरी तरह अविश्वसनीय साबित होती है. बेंच ने कहा, आरोपी ने शुरुआत से ही गांव की महिला प्रधान के पति के इशारे पर फंसाए जाने का मुद्दा उठाया था. इसके बावजूद पुलिस ने जांच में बेहद गंभीर लापरवाहियां दिखाई हैं. इसके अलावा भी बहुत सारे फैक्ट्स अभियोजन की कहानी पर मजबूत संदेह पैदा करते हैं, लेकिन निचली अदालतों ने इसकी अनदेखी की.

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