Hate Speech Matter: योगी आदित्यनाथ से जुड़े केस में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व किया ऑर्डर, जानिए क्या था मामला

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Aug 24, 2022, 08:51 PM IST

योगी आदित्यनाथ के ऊपर साल 2007 में एक रैली के दौरान उन्माद भड़काने वाला भाषण देने के आरोप लगे थे. यह मामला उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद वापस ले लिया गया था. इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी थी. इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी.

डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से जुड़े Hate Speech के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. यह मामला साल 2007 की रैली में योगी आदित्यनाथ के एक भाषण से जुड़ा है, जिसके लिए उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है.

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चीफ जस्टिस की बेंच कर रही थी सुनवाई

ANI के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैसले के खिलाफ चल रही सुनवाई भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना (Justice NV Ramana) की बेंच कर रही है. इस बेंच में चीफ जस्टिस के साथ जस्टिस हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) और जस्टिस सीटी रविकुमार (Justice CT Ravikumar) भी शामिल हैं. बेंच ने सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बुधवार को अपना फैसला रिजर्व किया. फैसला सुनाने के लिए कोर्ट ने कोई तारीख नियत नहीं की है.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2018 में खारिज की थी अपील

सु्प्रीम कोर्ट परवेज परवाज (Parvez Parwaz) की याचिका सुन रहा है, जिन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2018 के फैसले को चुनौती दी है. याची का आरोप है कि हिंदू युवा वाहिनी (Hindu Yuva Vahini) संगठन के नेता योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में 27 जनवरी, 2007 को आयोजित रैली में दो समुदायों के बीच घृणा बढ़ाने वाला भाषण दिया था. इसके लिए उनके खिलाफ राज्य सरकार की तरफ से मुकदमा चलाए जाने की मंजूरी नहीं देना गलत है.

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हाईकोर्ट ने परवेज की याचिका खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि उसे इस मामले की जांच या मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं देने का निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई खामी नहीं मिली है. ऐसे में इस आदेश में अदालत के हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है.

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2017 में यूपी सरकार के विधि विभाग ने रोका था अभियोजन

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार के विधि विभाग ने 1 मई, 2017 को एक रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि पूरे जांच रिकॉर्ड का परीक्षण करने के बाद सबूतों के अभाव में इस मामले में अभियोजन की मंजूरी देने का कोई कारण नहीं दिख रहा है. गृह विभाग के विशेष सचिव ने विधि विभाग की रिपोर्ट को सही मानते हुए प्रमुख सचिव गृह से अभियोजन रोकने की मंजूरी मांगी थी. इस सिफारिश को स्वीकार करते हुए यह मामला निस्तारित कर दिया गया था, जिसका आदेश संयुक्त सचिव गृह ने जारी किया था. 

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दो साल पहले CBCID ने मांगी थी मुकदमा चलाने की मंजूरी

इस मामले को निस्तारित करने के समय योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे, जबकि इससे पहले साल 2015 में समाजवादी पार्टी (SP) की सरकार के दौरान राज्य की सीबीसीआईडी (CBCID) ने फाइनल रिपोर्ट ड्राफ्ट (DFR) दाखिल करते हुए योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी. सीबीसीआईडी ने उन्हें IPC की धारा 143, 153 153ए, 295ओ, 505 का अपराधी माना था. इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव ने कहा था कि तत्कालीन राज्य सरकार (समाजवादी पार्टी की सरकार) ने मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.

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