डीएनए हिंदी: साल 2013 में पहली बार ऐसा इंतजाम किया गया कि अगर किसी चुनाव में आप एक भी प्रत्याशी को पसंद न करें तो NOTA (इनमें से कोई नहीं) का बटन दबा दें. धीरे-धीरे NOTA पर वोट डालने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है. एक अध्ययन के मुताबिक, साल 2018 के बाद हुए राज्य विधानसभाओं के चुनावों और लोकसभा चुनाव में अभी तक कुल 1.3 करोड़ लोग नोटा पर वोट डाल चुके हैं. यानी इतने मतदाताओं को कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं आया.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 66.2 लाख लोगों ने नोटा पर वोट डाला. यह कुल डाले गए वोटों को 1.06 प्रतिशत था. बिहार की गोपालगंज (सुरक्षित) लोकसभा सीट पर 51,660 वोट नोटा पर डाले गए जो कि सबसे ज्यादा थेय वहीं, लक्षद्वीप लोकसभा सीट पर सबसे कम 100 वोट डाले गए.
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रेड अलर्ट सीटों पर सबसे ज्यादा नोटा वेट
जिन सीटों पर तीन या उससे ज्यादा उम्मीदवार आपराधिक मामलों वाले होते हैं. उन्हें 'रेट अलर्ट सीट' कहा जाता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से अभी तक हुए सभी विधानसभा चुनावों में रेड अलर्ट सीटों पर कुल 26.8 लाख वोट नोटा पर डाले गए. इसमें से सबसे ज्यादा बिहार की कुल 217 सीटें थीं जिनपर कुल 6.1 लाख वोट डाले गए.
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आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद 2013 में नोटा की सुविधा शुरू की गई थी. सबसे पहले छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल किया गया. अब तक नोटा पर सबसे ज्यादा वोट साल 2020 में डाले गए. यह संख्या उस साल डाले गए कुल वोटों का 1.5 प्रतिशत थी.
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