डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश की ब्रांडिंग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की सरकार हमेशा 'एमपी गजब है, सबसे अजब है' टैगलाइन के साथ करती है. अब एक ऐसी जानकारी सामने आई है, जिससे सच में यह साबित हो गया है कि एमपी सच में अजब-गजब है. दरअसल 66 साल बाद भी राज्य में सरकारी फाइलों और दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए किसी तरह का कानून ही मौजूद नहीं है यानी यदि आप किसी सरकारी दस्तावेज को नष्ट कर देते हैं तो शायद ही कोई कानूनी कार्रवाई हो पाएगी. नतीजतन राज्य के सरकारी विभागों में फाइलों और दस्तावेजों का गायब हो जाना एक आम बात है, जिसका खामियाजा आम जनता से लेकर ईमानदार अधिकारियों-कर्मचारियों तक को भुगतना पड़ता है. राज्य के सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस पर चिंता जताते हुए सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (GAD) को तत्काल राज्य में पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट लागू करने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है.
केंद्र के कानून जैसा सख्त होगा मध्य प्रदेश का पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट
राज्य सूचना आयुक्त सिंह (Madhya Pradesh State information Commissioner Rahul Singh) ने GAD को दस्तावेजों की सुरक्षा का कानून केंद्रीय गाइडलाइंस के आधार पर बनाने को कहा है. उन्होंने राज्य में दस्तावेजों के प्रबंधन के लिए केंद्र के पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट, 1993 (Public Records Act, 1993) से मेल खाता कानून तैयार करने का आदेश दिया है, जिसमें दस्तावेजों और फाइलों को गायब करने के दोषी अधिकारियों को 5 साल की कैद और 10,000 रुपये तक के जुर्माने समेत अन्य कड़े प्रावधान शामिल हों. सिंह ने आदेश में GAD के प्रमुख सचिव को 23 जनवरी तक आयोग के सामने अनुपालन रिपोर्ट भी पेश करने का आदेश दिया है.
कानून की गैरमौजूदगी में मनमानी कर रहे अधिकारी
सिंह ने अपने आदेश में मध्य प्रदेश में अपना पब्लिक रिकॉर्ड्स एक्ट नहीं होने को शॉकिंग फैक्ट बताया है. उनके मुताबिक, सरकारी ऑफिसों में अवैध तरीके से रिकॉर्ड्स नष्ट होना, उनके कुप्रबंधन और खोने के मामलों में अधिकारियों के मनमाने और ढीले रवैये के पीछे सरकारी रिकॉर्ड के प्रशासन व प्रबंधन के लिए किसी तरह का लीगल फ्रेमवर्क की अनपस्थिति ही कारण है.
सरकारी ऑफिसों से गायब होते हैं किस तरह के रिकॉर्ड्स?
राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के आदेश ने सरकारी कार्यालयों में गायब दस्तावेजों और आम आदमी की दुर्दशा के प्रति अधिकारियों के कठोर रवैये के पीछे की वास्तविकता को उजागर किया है. आदेश में GAD को चेतावनी दी गई है कि दस्तावेजों के खोने और नष्ट होने के मामलों को सतही तरीके से नहीं निपटाया जाना चाहिए.
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जिंदगी पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है ये अपराध
SIC सिंह का कहना है कि दस्तावेजों के गायब होने का किसी व्यक्ति की जिंदगी और करियर पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है. SIC ने आदेश में राज्य सूचना आयोग के पास रिकॉर्ड्स के खोने और नष्ट होने को लेकर लगातार आने वाली शिकायतों का भी जिक्र किया है. इनमें से ज्यादातर शिकायत लैंड रिकॉर्ड गायब होने, गलत या अवैधानिक तरीके से की गई नियुक्तियों से जुड़े मामलों, भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़ी जांच रिपोर्ट्स आदि शामिल होते हैं. उन्होंने कहा है कि ऐसे दस्तावेजों का गायब होने संगठन से लेकर व्यक्तियों तक पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है. साथ ही सरकारी अधिकारियों के खिलाफ चल रही प्रशासनिक कार्रवाई भी इससे प्रभावित हो सकती है.
पुलिस रिपोर्ट का आदेश देते ही लौटे हैं कागजात
सिंह ने आदेश में एक रोचक फैक्ट का भी जिक्र किया है. उनका कहना है कि कई मामलों में सूचना आयोग ने जैसे ही गायब फाइल से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराने का आदेश दिया है, वैसे ही ये फाइल और दस्तावेज वापस लौट आए हैं.
जाति प्रमाणपत्र गायब होने की सुनवाई के दौरान मिली जानकारी
SIC राहुल सिंह ने GAD को यह आदेश एक जाति प्रमाणपत्र के सरकारी रिकॉर्ड से गायब होने के मामले की सुनवाई के दौरान जारी किया. इस मामले में महज पब्लिक रिकॉर्ड ही गायब नहीं हुआ, बल्कि इसके लिए दाखिल RTI आवेदन भी गायब हो गया. सुनवाई के दौरान यह जानकारी मिलने पर सिंह हैरान रह गए कि पिछले 3 साल के दौरान इस मामले में किसी की जवाबदेही ही तय नहीं हो सकी है. सिंह ने इस मामले में तीन उपजिलाधिकारियों से 58,000 रुपये का जुर्माना वसूलने का आदेश दिया है. साथ ही सतना के जिलाधिकारी गायब रिकॉर्ड्स के मामले में जांच शुरू कराने का आदेश भी दिया है.
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