नांदेड़ अस्पताल में 'छुट्टियों' के कारण हुई 31 मौतें, जानिए हाईकोर्ट को क्या बताएगी शिंदे सरकार

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Oct 05, 2023, 04:08 PM IST

Nanded Hospital

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एकनाथ शिंदे सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि इन मौतों के लिए अगर अस्पताल में स्टाफ या दवाइयों की कमी होना पाया गया तो यह सहन नहीं किया जाएगा. 

डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र के नांदेड़ के एक अस्पताल में 72 घंटे में 31 लोगों की मौत पर बवाल मचा हुआ है. विपक्ष इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहा है. वहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस मामले में संज्ञान लेते हुए एकनाथ शिंदे सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. इस बीच शिंदे सरकार ने इन मौतों के लिए उस प्राइवेट हेल्थकेयर यूनिट को दोष मढ़ने की तैयारी कर ली है, जो उस दौरान छुट्टी पर था.

सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार शुक्रवार को हाईकोर्ट को बता सकती है कि नांदेड़ में डॉ. शंकरराव चव्हाण सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पास के निजी अस्पतालों में लगातार छुट्टियों के कारण कर्मचारी कम थे. सरकार का मानना है कि निजी अस्पतालों ने गंभीर मामलों को सरकारी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया था. जिसमें कई नवजात शिशुओं के केस भी थे. इस वजह से नांदेड़ के डॉ. शंकरराव चव्हाण गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में मौतों की संख्या बढ़ गई.

हाईकोर्ट में ये जवाब दे सकती है शिंदे सरकार
सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार अपने हलफनामे में यह कह सकती है कि नांदेड़ अस्पताल में कम से कम 10 नवजात शिशुओं की मौत के लिए निजी स्वास्थ्य इकाइयां जिम्मेदार हैं. गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि इन मौतों का कारण अगर अस्पताल में स्टाफ या दवाइयों की कमी होना पाया गया तो यह सहन नहीं किया जाएगा. 

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हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की अध्यक्षता वाली बेंच ने शिंदे सरकार को शुक्रवार तक अस्पताल के बजट आवंटन का ब्योरा जमा कराने का आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने दो अस्पतालों के डॉक्टरों की शिकायत का हवाला दिया, जिसमें बेड, स्टाफ और दवाइयों की कमी होने को मौत का कारण बताया गया था.

डीन के खिलाफ FIR दर्ज
वहीं, महाराष्ट्र पुलिस ने नांदेड जिले के सरकारी अस्पताल के कार्यवाहक डीन और एक डॉक्टर के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है. इस अस्पताल में 48 घंटों में 31 मरीजों की मौत हुई थी. अधिकारी ने बताया कि डॉ.शंकर राव चव्हाण राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के कार्यवाहक डीन एस.आर. वाकोडे और बाल रोग विभाग के प्रमुख के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. उन्होंने बताया कि यह FIR एक व्यक्ति की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई है जिसकी बेटी और नवजात शिशु की मौत हो गई थी.

अधिकारी ने बताया कि अस्पताल के दोनों अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-304 (गैर इरादतन हत्या) और धारा-34 (साझा मंशा) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. अधिकारियों ने बताया कि 30 सितंबर से अगले 48 घंटे में अस्पताल में नवजातों सहित 31 मरीजों की मौत दर्ज की गई थी जबकि दो और तीन अक्टूबर को छह और मरीजों की जान चली गई. प्राथमिकी के मुताबिक 21 वर्षीय गर्भवती महिला अंजलि को 30 सितंबर को रात आठ बजे अस्पताल लाया गया. अंजलि के पिता कामजी टोम्पे ने शिकायत में बताया कि उनकी बेटी ने 30 सितंबर की देर रात करीब एक बजे बेटी को जन्म दिया और डॉक्टरों ने बताया कि जच्चा-बच्चा दोनों सेहतमंद हैं.

डीन ने डॉक्टरों को नहीं करने दिया इलाज
शिकायत के मुताबिक, बाद में सुबह अंजलि का रक्तस्राव होने लगा और नवजात की तबीयत भी बिगड़ गई. इसके बाद डॉक्टरों ने परिवार के सदस्यों से दवाएं, खून की थैली और अन्य सामान बाहर से लाने को कहा. टोम्पे ने बताया कि जब सामान लेकर परिजन अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर वार्ड में मौजूद नहीं थे. उन्होंने आगे दावा किया कि वाकोडे ने जानबूझकर उन्हें अपने पास बैठा लिया और अंजलि की जांच करने के लिए किसी डॉक्टर या नर्स को नहीं भेजा. 

शिकायत के मुताबिक, डॉक्टरों ने अंजलि की बच्ची को दो अक्टूबर सुबह छह बजे मृत घोषित किया और शव सौंप दिया. बाद में चार अक्टूबर को पूर्वाह्न 10 बजकर 30 मिनट पर अंजलि को भी मृत घोषित कर दिया गया.’ टोम्पे ने आरोप लगाया कि डीन ने जानबूझकर डॉक्टरों को अंजलि का इलाज करने नहीं दिया एवं डॉक्टरों ने परिवार के सदस्यों से करीब 45 हजार रुपये की दवाएं बाहर से लाने को कहा. उन्होंने दावा किया कि उनकी नजरों के सामने कई और मरीजों की मौत डॉक्टरों, नर्स और दवाओं की अनुपलब्धता की वजह से हो गई. इस शिकायत पर वाकोडे प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध नहीं हो सके.

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