Maharashtra के शिरडी के एक फूल व्यापारी रवींद्र अष्टेकर ने मानवता की मिसाल कायम कर दी है. अष्टेकर ने कार से 440 किलोमीटर का सफर तय किया और जिंदगी-मौत से जूझ रही एक महिला को खून देकर उसकी जान बचा ली. इस घटना के बाद अष्टेकर की बेहद तारीफ हो रही है. दरअसल महिला की हालत गलत ब्लड चढ़ा देने के कारण बेहद गंभीर थी. उसे बेहद रेयर कहे जाने वाले बॉम्बे ब्लड ग्रुप का खून चाहिए था. अष्टेकर ने महिला को यह खून देकर उसकी जान बचाई है.
WhatsApp से मिली थी महिला की हालत खराब होने की सूचना
अष्टेकर को WhatsApp पर एक ब्लड डोनर ग्रुप से इस 30 वर्ष की महिला की गंभीर हालत के बारे में जानकारी मिली थी. इसके बाद वे शिरडी से कार से निकले और 440 किलोमीटर दूर इंदौर के एक अस्पताल में पहुंचकर महिला के लिए ‘बॉम्बे’ (Bombay Blood or hh Blood Group) ग्रुप का ब्लड डोनेट किया है. अष्टेकर ने कहा, 'जब मैंने व्हाट्सऐप ग्रुप के जरिए महिला की हालत के बारे में सुना, तो मैं तुरंत अपने दोस्त की कार से इंदौर के लिए निकल गया. अब, मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मैं किसी की जान बचाने में कॉन्ट्रिब्यूशन दे पाया हूं.' अष्टेकर पिछले 10 वर्षों में महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के अलग-अलग शहरों में आठ बार यह रेयर ब्लड डोनेट कर चुके हैं.
ऑपरेशन के दौरान अस्पताल से हुई गलती
इंदौर के शासकीय महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय (एमवायएच) के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन डिपार्टमेंट के चीफ डॉ. अशोक यादव ने बताया कि महिला को एक अन्य अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान गलती से ‘O’ पॉजिटिव रक्त चढ़ा दिया गया था, जिससे उसकी हालत गंभीर हो गई और उसकी किडनी को नुकसान पहुंचा है. उन्होंने बताया कि जब महिला को इंदौर के रॉबर्ट्स नर्सिंग होम लाया गया, तो उसका हीमोग्लोबिन लेवल 4 ग्राम प्रति डेसीलीटर रह गया था, जबकि नॉर्मल लेवल 12 से 15 ग्राम प्रति डेसीलीटर होता है. समय पर ‘बॉम्बे’ ग्रुप का रक्त चढ़ाए जाने के बाद महिला की हालत में सुधार हुआ है.
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हवाई रास्ते से भी मंगवाया गया ब्लड
इंदौर के सोशल इंस्टीटूशन 'दामोदर युवा संगठन' के ब्लड कॉल सेंटर के चीफ अशोक नायक ने महिला के लिए ब्लड जुटाने का कैंपेन शुरू किया था. नायक ने बताया कि ‘बॉम्बे’ ग्रुप का दो यूनिट ब्लड नागपुर से हवाई जहाज में मंगवाया गया, जबकि एक यूनिट रक्त महिला की बहन ने इंदौर में डोनेट किया है.
बेहद रेयर है ‘बॉम्बे’ ब्लड ग्रुप
डॉ. यादव ने यह भी कहा कि अगर समय पर इस रेयर रक्त ग्रुप का बल्ड नहीं मिला होता, तो महिला की जान को खतरा हो सकता था. गौरतलब है कि ‘बॉम्बे’ ग्रुप की खोज वर्ष 1952 में हुई थी और इसे बेहद रेयर माना जाता है, जिसमें इस ग्रुप के व्यक्तियों को केवल इसी ग्रुप के व्यक्ति खून दे सकते हैं.
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