Amit Shah-Hemant Soren की मुलाकात, क्या झारखंड में दोहराई जाएगी महाराष्ट्र की स्क्रिप्ट?

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 05, 2022, 01:07 PM IST

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और गृहमंत्री अमित शाह.

झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस में कई मुद्दों पर मतभेद सामने आ रहे हैं. क्या राज्य की स्थिति महाराष्ट्र जैसी हो सकती है? पढ़ें अभिनव गुप्ता का विश्लेषण.

डीएनए हिंदी: जब से भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सत्ता विस्तार हुआ है ऐसे बेहद कम पल आए हैं जब कोई सियासी उथल-पुथल की खबर सामने न आई हो. बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व किसी भी राज्य की सत्ता व्यवस्था को बदल देने में सक्षम है. शिवसेना (Shiv Sena), कांग्रेस (Congress) और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) का बेमेल गठजोड़ जब अस्तित्व में आया तो लगा कि अब यह गठबंधन 5 साल नहीं टूटेगा. गठबंधन दल तो साथ रहे लेकिन उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी तक नहीं बचा पाए. शिवसेना के विधायक ही उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का साथ छोड़कर उनके करीबी सहयोगी रहे एकनाथ शिंदे का हाथ थाम लिया. ऐसा लगता है कि बीजेपी का यह विजय रथ सिर्फ महाराष्ट्र तक ठहरने वाला नहीं है.कई और राज्यों में भी सत्ता विस्तार बीजेपी कर सकती है. इस विस्तार में चुनाव आयोग की भूमिका ही नहीं होती.

महाराष्ट्र जैसी ही सियासी पटकथा भारतीय जनता पार्टी झारखंड में गढ़ती नजर आ रही है. झारखंड में यूपीए सरकार है. कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठबंधन में दरार पड़ती नजर आ रही है. जब गृहमंत्री अमित शाह और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते सप्ताह बैठक की तभी अटकलें लगाई जाने लगीं. और तो और राष्ट्रपति चुनाव में हेमंत सोरेन ने राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का वादा किया है. इसे झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के बीच दरार के तौर पर देखा जा रहा है.

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जहां सत्ता नहीं, वहां अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करती है BJP

कांग्रेस का कहना है कि जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी शासन नहीं कर रही है, वहां की सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश लगातार बीजेपी कर रही है. हालांकि यह सच था कि शिवसेना का भीतरी कहल ही पार्टी के बंटवारे के लिए जिम्मेदार है.

भारतीय जनता पार्टी ने विरोधियों को जवाब देने के लिए यह साबित कर दिया कि उसे सत्ता की भूख नहीं है. बीजेपी ने शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना दिया. अपने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बीजेपी ने डिप्टी सीएम बना दिया. 

भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा है कि यह सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं है जहां ऐसा परिवर्तन हुआ है. अगली बारी झारखंड और राजस्थान की है.

अमित शाह-हेमंत सोरेन की मुलाकात के बाद क्यों बढ़ी अटकलें?

आधिकारिक तौर पर, बीजेपी का कहना है कि अमित शाह और हेमंत सोरेन के बीच मुलाकात कुछ अलग नहीं थी. सिर्फ बैठक ऐसे वक्त में हुई है जब लोग अटकलें लगा रहे हैं. झामुमो इस बात को लेकर मुश्किल में है कि क्या वह बीजेपी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देकर फंस तो नहीं गई है. झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासियों की सबसे बड़ी पार्टी कही जा सकती है. द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासी नेता हैं. यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब राज्य में कांग्रेस के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन में दरार की खबरें सामने आ रही हैं.

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सौदेबाजी की कोशिश कर रही है JMM 

डीएनए इंग्लिश से बात करते हुए बीजेपी सांसद महेश पोद्दार ने कहा कि महाराष्ट्र में जो हुआ वह उनके अपने किए का नतीजा था. महेश पोद्दार ने कहा है कि शिवसेना हिंदुत्व के एजेंडे से हट गई थी जिससे शिवसैनिकों में आक्रोश पैदा हो गया और इतनी बड़ी बगावत हो गई. महेश पोद्दार ने कहा कि बीजेपी विपक्ष के तौर पर सिस्टम को खराब होने की इजाजत नहीं दे सकती थी. बीजेपी ने जिम्मेदारी ली और ऐसी सरकार बनाने के लिए आगे आई जिसे स्थिर कहा जा सके. 

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महेश पोद्दार का कहना है, 'द्रौपदी मुर्मू की वजह से झारखंड मुक्ति मोर्चा असमंजस में है. आदिवासी वोटों पर अपने दावे के बाद भी अपनी अनिच्छा की वजह से भ्रमित हैं. वह जो करना चाहते हैं, कर नहीं पा रहे हैं.' बीजेपी नेता ने कहा कि हेमंत सोरेन द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के लिए सौदेबाजी कर रहे थे. अपने फायदे के लिए आदिवासी आंदोलन को दांव पर लगा सकते हैं.

'झामुमो के साथ कांग्रेस का गठबंधन दांव पर'

कांग्रेस को भरोसा है कि बीजेपी को झारखंड में महाराष्ट्र जैसा अवसर नहीं मिलेगा जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का गठबंधन मजबूत है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अंशुल अविजीत ने दावा किया कि बीजेपी 2019 से झारखंड में सरकार गिराने की कोशिश कर रही है, लेकिन ऐसा करने में विफल रही है.

अंशुल अविजीत ने कहा, 'बीजेपी की मंशा है कि जहां कहीं भी स्थिरता हो, वहां अस्थिर कर दिया जाए. उनका शासन बनाए रखने का कोई इरादा नहीं है. जब आप सत्ता से बाहर होते हैं तो सत्ता हासिल करने की एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया होती है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, राज्य की एजेंसियों को अस्थिरता के इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लिए पूरी तरह से हथियारबंद कर दिया गया है.'

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि झारखंड में बीजेपी के पास संख्याबल नहीं है और उसे अलग होने के लिए कांग्रेस के लगभग दो-तिहाई की जरूरत होगी. उन्होंने कहा कि ऐसा संभव नहीं हो सकता.

क्या झारखंड पर दांव खेल सकती है बीजेपी?

झारखंड की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले टिप्पणीकार अमिताभ तिवारी ने कहा कि इस बात की संभावना है कि बीजेपी सरकार गिराने की कोशिश करे लेकिन ऐसा करने से पार्टी को ज्यादा फायदा नहीं होगा.

उन्होंने कहा कि जब आप सिर्फ ढाई साल के लिए सत्ता में आते हैं तो सत्ता विरोधी लहर आप के खिलाफ माहौल बना देती है, जिससे 5 साल बाद सत्ता में आने की संभावना खतरे में पड़ जाती है. जब आप गठबंधन के जरिए सरकार बनाते हैं तब हमेशा सरकार अस्थिर होती है.

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अमिताभ तिवारी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने 2000 से 2012 के बीच कम से कम 10-12 मुख्यमंत्री देख चुके हैं. झारखंड में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने 2019 में आदिवासी बेल्ट में 28 में से 25 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी दो सीटों पर दावा करने में सफल रही. झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में झामुमो के 30, कांग्रेस के 16 और बीजेपी के 25 विधायक हैं.

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