महाराष्ट्र की सरकार ने मराठों को 10 प्रतिशत आरक्षण (Maratha Reservation) देने का फैसला कर लिया है. विधानसभा के विशेष सत्र () से ठीक पहले एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की अगुवाई वाली सरकार की कैबिनेट (Maharashtra Cabinet) ने इस फैसले को मंजूरी दे दी है. अब इस बिल को विधानसभा में पेश किया जाएगा और इस पर चर्चा होगी. इस बिल को विधानसभा से भी पास कर दिया है.
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की अगुवाई में राज्य के मराठा समुदाय के लोग कई बार आंदोलन कर चुके हैं. इन दिनों भी मनोज जरांगे अपने गृह नगर जालना में 10 फरवरी से भूख हड़ताल पर बैठे हैं. महाराष्ट्र सरकार की बात मानकर कई बार अपना अनशन समाप्त कर चुके मनोज जरांगे पाटिल ने इस बार कहा था कि वह अपनी बात मनवाए बिना नहीं हटने वाले हैं.
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फिर पार होगी 50 पर्सेंट की सीमा
महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले से एक बार फिर से 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन होगा. इससे पहले, साल 2018 में देवेंद्र फडणवीस की सरकार सामाजिक और आर्थिक पिछड़ों के लिए आरक्षण का कानून लेकर आई थी. बता दें कि महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण देने के लिए एक दशक के अंदर तीसरी बार बिल लाया जा रहा है.
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मनोज जरांगे की भूख हड़ताल के चलते महाराष्ट्र सरकार दबाव में है और उसे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना पड़ा है. हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय के एक हिस्से को कुनबी सर्टिफिकेट देने का ऐलान किया था. हालांकि, मनोज जरांगे ने मांग की थी कि यह सर्टिफिकेट किसी खास वर्ग के बजाय पूरे मराठा समुदाय को दिया जाए. इस मराठा आरक्षण को लेकर एनसीपी नेता छगन भुजबल जमकर विरोध भी कर रहे हैं.
कैसे हुआ यह फैसला?
यह फैसला महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग (MBCC) की रिपोर्ट के बाद लिया गया है. इस आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) सुनील शुक्रे की टीम ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. आयोग का कहना है कि यह रिपोर्ट तैयार करने के लिए 9 दिनों में 2.5 करोड़ घरों में सर्वे करवाया गया है. इसी कमेटी ने प्रस्ताव रखा था कि शिक्षा और नौकरियों के क्षेत्र में मराठों को 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाए.
बता दें कि राज्य में 2018 से ही EWS कैटगरी के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है. कमेटी का प्रस्ताव है कि EWS कैटगरी के आरक्षण की तरह ही मराठों को भी आरक्षण दिया जा सकता है.
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