मंगल पांडेय: 1857 के विद्रोह का वह हीरो जिसने अंग्रेजों पर चलाई थी पहली गोली

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 18, 2022, 04:25 PM IST

1857 में भड़की थी क्रांति की ज्वाला.

बैरकपुर. अंग्रेज सैनिकों की ऐसी छावनी न जहां न तो विद्रोह की ज्वाला भड़की थी, न ही कभी क्रांतिकारियों के हौसले बुलंद हुए. 1857 में भड़की क्रांति की पटकथा यहीं से लिखी गई.

डीएनए हिंदी: 19वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश हुकूमत (British Rule) के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत किसी के पास नहीं थी. ज्यादातर राज्यों पर अंग्रेज कब्जा जमा चुके थे या आक्रमण कर रहे थे. कलकत्ता से कुछ मील की दूरी पर एक शांत सैनिक छावनी थी जिसका नाम बैरकपुर (Barrackpore) था. इस छावनी में सबसे ज्यादा भारतीय सैनिक तैनात थे क्योंकि अंग्रेज गवर्नर जनरल यहीं पर तैनात थे. यहीं पर एक सिपाही सब कुछ मौन होकर अपना काम कर रहा था. सिपाही का नाम था मंगल पांडे.

मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था. कौन जानता था कि मंगल पांडेय एक दिन अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें हिलाकर रख देगा. मंगल पांडेय बैरकपुर में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना के सिपाही थी. उन्होंने ही पहले क्रांति का बिगुल फूंका.

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क्यों मंगल पांडेय को रास नहीं आया अंग्रेजी फरमान? 

1857 के संग्राम में मंगल पांडे भूमिका सबसे खास रही. मंगल पांडेय को मंजूर नहीं था कि वह चर्बी वाले कारतूसों का इस्तेमाल करें. उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि यह मंजूर नहीं है. भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों ने जो राइफलें दी थीं, उनमें इस्तेमाल होने वाले कारतूसों में सूअर और गाय की चर्बी होती थी. इन कारतूसों को मुंह से खींचकर निकालना होता था, जिसके लिए सैनिक तैयार नहीं थे. भारतीयों ने इन कारतूसों के प्रयोग को धार्मिक भावनाओं का अपमान बताया और इसका विरोध शुरू कर दिया.

25 मार्च को किया था अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह

25 मार्च को इन कारतूसों को लेकर मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेज अफसरों के खिलाफ विद्रोह किया, इसके बाद मेरठ में तीसरी इन्फेंट्री के 85 सिपाही भी बगावत कर बैठे. अंग्रेजों के लिए उस विद्रोह को दबाना ज्यादा मुश्किल नहीं रहा और विद्रोह के बाद जांच बिठा दी गई, जिसमें तय हुआ कि विद्रोही सिपाहियों का कोर्ट मार्शल होगा.

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8 अप्रैल को अंग्रेजों ने दी फांसी
8 अप्रैल को  विद्रोह  के प्रमुख सूत्रधार मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ा दिया गया. 9 मई को परेड ग्राउंड पर मेरठ की तीनों रेजिमेंट के सामने कारतूस लेने से इनकार करने वाले सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया और उन्हें विक्टोरिया पार्क में बनी जेल में बंद कर दिया.

ऐसे पड़ी थी गदर की नींव

10 मई की सुबह से ही मेरठ में भीड़ जुटनी शुरू हो गई. अंग्रेज अफसर कर्नल जोंस फिनिस ने भीड़ को रोकने का प्रयास किया. उसी समय छावनी के बाहर अंग्रेज अफसर की हत्या कर दी गई. मेरठ के सदर थाने के कोतवाल धन सिंह गुर्जर पांच हजार से ज्यादा लोगो के साथ मिलकर विक्टोरिया पार्क की जेल पर हमला कर दिया. जेल में बंद  सैनिकों कैदीओं को छुड़ाकर जेल को आग के हवाले कर दिया गया.

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मेरठ से दिल्ली तक सुनाई दी विद्रोह की गूंज

11 मई को क्रांतिकारी मेरठ से 76 किमी दूर दिल्ली के लालकिले पर पहुंचे और दिल्ली में भी अपना कब्जा कर लिया. उसके बाद आजादी की ज्वाला समूचे देश में फेल गई. 4 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने कोतवाल धन सिंह गुर्जर को फांसी दे दी.

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