Mohammad Zubair की जमानत याचिका खारिज, कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jul 02, 2022, 10:59 PM IST

मोहम्मद जुबैर

Mohammad Zubair Jailed: कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

डीएनए हिंदी: ऑल्ट न्यूज़ के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर (Mohammad Zubair) की जमानत याचिका को दिल्ली की एक अदालत ने खारिज कर दिया है. इसके साथ ही जुबैर के खिलाफ अपराधों की प्रकृति और गंभीरता तथा जांच के शुरुआती चरण में होने का हवाला देते हुए उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. आपको बता दें कि मोहम्मद जुबैर साल 2018 में हिंदू देवता के बारे में एक आपत्तिजनक ट्वीट करने के मामले में आरोपी हैं. उनके खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने और लोगों को उकसाने का आरोप लगा है.

शनिवार देर शाम अदालत के फिर से बैठने के बाद मुख्य मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया ने फैसला सुनाया. इससे पहले, दिन में मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. दिल्ली पुलिस ने जुबैर की पांच दिन की पुलिस रिमांड शनिवार को खत्म होने पर अदालत से आग्रह किया कि उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा जाना चाहिए.

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खारिज कर दी गई जमानत याचिका
जस्टिस सरवरिया ने अपने आठ पन्नों के आदेश में कहा, 'क्योंकि मामला जांच के प्रारंभिक चरण में है और मामले के समग्र तथ्य और परिस्थितियां तथा आरोपी के खिलाफ कथित अपराधों की प्रकृति और गंभीरता के मद्देनजर, जमानत देने का कोई आधार नहीं है. इसे ध्यान में रखते हुए आरोपी की जमानत अर्जी खारिज की जाती है और आरोपी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है.' 

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आदेश में, अदालत ने सरकारी वकील की इस दलील पर भी विचार किया कि जांच प्रारंभिक चरण में है और इस बात की संभावना है कि आरोपी की पुलिस हिरासत की आवश्यकता पड़ेगी. न्यायाधीश ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए जांच के दौरान नई धाराएं जोड़े जाने को भी संज्ञान में लिया. लैपटॉप और मोबाइल फोन की जब्ती अवैध थी और आरोपी की गोपनीयता को प्रभावित कर रही थी, इस दलील पर अदालत ने कहा कि यह पुलिस की फाइल का हिस्सा था कि आरोपी के पास से शुरुआत में 27 जून को जब्त किए गए मोबाइल फोन में कोई डेटा नहीं था. 

जुबैर की दलील- पुराना मोबाइल चोरी हो गया था
आरोपी के इस दावे पर कि उसका पुराना मोबाइल चोरी हो गया था, अदालत ने कहा, 'रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो यह दर्शाता हो कि आरोपी का कोई मोबाइल फोन खो गया है, हालांकि उक्त याचिका वर्तमान अर्जी में अब ले ली गई है.' अदालत ने आगे कहा कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सील करने के बारे में आरोपी की चिंताओं को मौजूदा चरण में दूर नहीं किया जा सकता है क्योंकि डेटा के संबंध में जांच शुरुआती दौर में है और तलाशी वारंट के तामील के दौरान जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर अभी विचार किया जा रहा है. 

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अदालत ने कहा, 'जहां तक अर्जी की बात है, जिसमें दावा किया गया है कि वह कथित ट्वीट जिसके लिए आरोपी को गिरफ्तार किया गया है 2018 का है और हिंदी फिल्म ‘किसी से ना कहना’ का हिस्सा है और इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास स्थान,भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना), 295ए (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान कर उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य करने) का मामला नहीं बनता है. हालांकि, यह दलील आरोपी के लिए किसी तरह से मददगार नहीं है क्योंकि एफसीआरए अधिनियम की धारा 35 (के किसी प्रावधान के उल्लंघन के लिए सजा) भी जोड़ी गई है और जांच लंबित है.' 

न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी मोहम्मद जुबैर को को 16 जुलाई को संबंधित अदालत या ड्यूटी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए.

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