डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए कई चेहरे पर दांव लगाया जा रहा था लेकिन आखिरी सफलता मोहन यादव को मिली. लो प्रोफाइल यादव को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने एक साथ पूरी हिंदी पट्टी में ओबीसी वर्ग के वोट साधने की कोशिश की है. राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान ओबीसी प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया था और बीजेपी ने उसी समुदाय से आने वाले चेहरे को सीएम बनाकर बड़ा दांव चल दिया है. लोकसभा चुनाव में भी इससे बीजेपी को बढ़त मिल सकती है. क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन को साधने के लिए विंध्य इलाके से आने वाले राजेंद्र शुक्ल को बड़ा पद देकर बीजेपी ने मध्य प्रदेश में दलित और ब्राह्मण वोट बैंक और क्षेत्रीय समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा है.
राजनीतिक विश्लेषक लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इसे बीजेपी का स्मार्ट मूव मान रहे हैं. मध्य प्रदेश में लंबे समय बाद दो उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल (ब्राह्मण) और जगदीश देवड़ा (दलित) होंगे. शुक्ल जाति से ब्राह्मण हैं और विंध्य इलाके से आते हैं. दूसरी ओर दलित समुदाय से आने वाले जगदीश देवड़ा को भी डेप्युटी सीएम बनाया गया है. ग्वालियर चंबल संभाग से आने वाले नरेंद्र सिंह तोमर को भी विधानसभा अध्यक्ष का पद देकर संतुष्ट किया गया है.
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मध्य प्रदेश के साथ यूपी और बिहार पर भी नजर
मध्य प्रदेश में लगभग 50 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं. शिवराज सिंह चौहान की जगह पर मोहन यादव को सीएम बनाने के पीछे वजह है कि वह यादव समुदाय से आते हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंक तो है ही इस पर आरजेडी और सपा जैसी पार्टियों की अच्छी पैठ भी है. विपक्ष और खास तौर पर राहुल गांधी के ओबीसी प्रतिनिधित्व के मुद्दे की बीजेपी ने काट तैयार की है और इसे लोकसभा चुनाव में भुनाने की पूरी कोशिश होगी. प्रदेश की राजनीति के साथ ही बीजेपी ने देश की राजनीति को भी ध्यान में रखा है और छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरे को सीएम पद की शपथ दिलाई.
चुनावी राजनीति में जीत के लिए जाति समीकरण जरूरी
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में जाति की भले ही नई परिभाषा गढ़ी हो लेकिन इतना तो तय है की चुनावी राजनीति में जाति का सिक्का खूब चलने वाला है. यही वजह है कि मध्य प्रदेश में जिन दो चेहरों को डिप्टी सीएम के लिए चुना गया है उसमें भी जातीय भागीदारी और क्षेत्रीय संतुलन की पूरी कोशिश की गई है. ब्राह्मण के साथ दलित डिप्टी सीएम बनाए जाना कहीं न कहीं बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग का नमूना है.
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