सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में संपत्ति के बंटवारे और वसीयत से संबंधित एक केस की सुनवाई चल रही थी. मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मुसलमानों में संपत्ति के बंटवारे और वसीयत में महिलाओं के अधिकार से जुड़े 3 सवाल उठाए हैं. जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने संपत्ति और उत्तराधिकार में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी का अहम सवाल उठाया था.
मामले की अगली सुनवाई 25 मई को होगी
सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या किसी मुस्लिम महिला को भी संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 के तहत उत्तराधिकार में समानता के अधिकार का दावा करने का अधिकार है. इस मामले के लिए सीनियर एडवोकेट वी. गिरी को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है. केस की अगली सुनवाई के लिए 25 मई की तारीख रखी गई है.
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सुप्रीम कोर्ट ने पूछे 3 अहम सवाल
क्या किसी मुस्लिम महिला को संविधान के तहत उत्तराधिकार में समानता के अधिकार के तहत दावा करने का अधिकार है?
क्या किसी मुस्लिम शख्स को यह अधिकार है कि उसकी वसीयत के मुताबिक पूरी संपत्ति उसकी इच्छा के मुताबिक बांटे जा सकते हैं?
क्या किसी मुस्लिम व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा अपने कानूनी उत्तराधिकारियों की मंजूरी के बिना अन्य उत्तराधिकारियों को कानूनी तौर पर दे सकता है?
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मुस्लिमों में संपत्ति के बंटवारे का यह है नियम
मुसलमानों में संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया) एप्लीकेशन एक्ट 1937 के तहत होता है. किसी व्यक्ति की मौत के बाद सीधे संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों को नहीं मिल सकता है. मृतक के अंतिम संस्कार, अगर किसी तरह के कर्जे हैं, तो उनका निपटारा करने के बाद ही संपत्ति बांटने का अधिकार है. अगर मरने से पहले वसीयत नहीं लिखी गई है कुरान और हदीद में बताए नियमों के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा होता है.
इसमें बेटे और बेटी के लिए समान संपत्ति बंटवारे का प्रावधान नहीं है. अगर एक बेटा और एक बेटी है, तो बेटी को एक तिहाई और बेटे को दो तिहाई संपत्ति मिलती है. पत्नी को एक चौथाई हिस्सा मिलता है और बच्चे होने की स्थिति में यह एक/आठवां हिस्सा होता है.
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