राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है, कि वो मदरसों को फंड करना बंद कर दें. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर कहा है कि 'ना तो वे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं और न ही उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए किसी भी तरह की पहल कर रहे हैं.'
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने ये इनको भंग करने की भी अपील की है. आयोग ने मदरसों के कामकाज और मुस्लिम बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने में उनकी विफलता पर गंभीर चिंता जताते हुए यह सिफारिश की है. NCPCR की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आस्था के संरक्षक या अधिकारों के उत्पीड़क: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसा' में ये बातें कही हुई हैं.
आयोग ने केंद्र सरकार को लिखे पत्र में सिफारिश करते हुए लिखा कि अभिभावकों या माता-पिता की सहमति के बिना मदरसों में दाखिला लेने वाले सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को बाहर निकालकर मौलिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए. आयोग ने आंकड़े मध्य प्रदेश के मदरसों में 9,446 गैर-मुस्लिम बच्चे है.
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इसके बाद राजस्थान (3,103), छत्तीसगढ़ (2,159), बिहार (69) और उत्तराखंड (42) का स्थान आता है. कुल मिलाकर लगभग 14,819 गैर मुस्लिम बच्चे मदरसे में पढ़ रहे हैं. आयोग ने ओडिशा को लेकर आंकडे़ जारी करते हैं कहां है कि कोई गैर-मुस्लिम छात्र नहीं है. उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के आकड़े आयोग ने जारी किए है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित परीक्षाएं और निर्धारित पुस्तकें एनसीईआरटी और एससीईआरटी द्वारा दिए गए पाठ्यक्रम के अनुसार नहीं हैं. यही कारण हैं कि मदरसा के छात्र आरटीई के दायरे में आने वाले छात्रों से पीछे रह जाते हैं."
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