नीतीश कुमार का बढ़ता कद और लालू की राजनीति में वापसी बढ़ाएगी बीजेपी की मुश्किल? रोमांचक होगा 2024 का चुनाव

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jun 25, 2023, 07:30 AM IST

Lalu Yadav and Nitish Kumar

Nitish Kumar and Lalu Yadav Duo Back: लालू यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी बिहार से लेकर देश की राजनीति में फिर से सक्रिय हो गई है.

डीएनए हिंदी: बिहार में 20 विपक्षी दलों की बैठक के बाद से नया मोर्चा बनाने की कोशिशें तेज हुई हैं. माना जा रहा है कि इस पहल की अगुवाई करने वाले नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गया है. दूसरी तरफ, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुखिया लालू प्रसाद यादव भी राजनीति में फिर से वापसी कर रहे हैं. जिस तरह इन दोनों की जुगलबंदी काम कर रही है उससे यह माना जा रहा है कि अगर 2024 के चुनाव से पहले सभी दल साथ आ जाते हैं तो लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को दिक्कत हो सकती है. इसका असर सबसे ज्यादा वहां दिख सकता है जहां क्षेत्रीय दल काफी मजबूत हैं.

लालू यादव और नीतीश कुमार की जुगलबंदी 2015 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिली थी. इस चुनाव में महागठबंधन ने बंपर जीत हासिल की थी. हालांकि, बाद में स्थितियां बदल गईं. इससे पहले ये दोनों नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने में कामयाब रहे थे. 2024 में स्थिति बीजेपी के लिए और भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि सत्ता विरोधी लहर भी चरम पर है. केंद्र की बीजेपी सरकार को 2014 में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी उन्हें बीजेपी के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी बना देगी.

तेजी से बढ़ रही नीतीश कुमार की स्वीकार्यता
नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने अपने बुलावे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को पटना आने का निमंत्रण देने में अहम भूमिका निभाई थी. इससे यह भी साबित हो गया कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच नीतीश कुमार की स्वीकार्यता सबसे ज्यादा है. उनकी छवि साफ-सुथरी है और उनके खिलाफ कोई कानूनी या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है. उन्हें इन पार्टियों का संयोजक भी घोषित किया गया, जिसका मतलब है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए दो या दो से अधिक पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर बातचीत के दौरान मध्यस्थ की भूमिका निभाएंगे.

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पटना की बैठक की शानदार सफलता के बाद जद-यू विधायक शालिनी मिश्रा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट अपलोड किया, जिसमें नीतीश कुमार की तस्वीर और 'देश मांगे नीतीश' का नारा था. बिहार सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि हर जन आंदोलन के पीछे एक मजबूत व्यक्ति का हाथ होता है. बिहार अतीत में कई जन आंदोलनों का गवाह रहा है, जिसने देश में सत्तारूढ़ दलों को हिलाकर रख दिया था. चौधरी ने कहा, लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है और यह नीतीश कुमार के प्रयासों से संभव है.

ललन सिंह बोले- इमरजेंसी का विरोध किसी सरकार का विरोध नहीं था
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा, 'जेपी नड्डा और अमित शाह के पास हमसे कहने के लिए कुछ नहीं बचा है. इसलिए, वे कांग्रेस और शिवसेना के एक ही मंच पर आने की बात करते हैं जहां हम हैं. यह एक गैर-जिम्मेदाराना कदम है. 1975 में आपातकाल के दौरान जब हम लड़ रहे थे, तो यह उस समय की स्थिति के खिलाफ लड़ाई थी, न कि किसी सरकार के खिलाफ. वर्तमान चरण में स्थिति आपातकाल से भी बदतर है. उस समय प्रेस स्वतंत्र था लेकिन अब प्रेस उनके नियंत्रण में है, सभी संवैधानिक संस्थाएं उनके नियंत्रण में हैं. उन्होंने मीडिया संगठनों के प्रबंधन पर नियंत्रण कर लिया है. इसलिए, आज लोकतंत्र खतरे में है. भाजपा लोकतंत्र को नष्ट कर रही है और हमें आपातकाल याद करने के लिए कह रही है.'

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ललन सिंह ने अमित शाह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'वह एक भविष्यवक्ता हैं और अगर उन्होंने भविष्यवाणी की है कि बीजेपी 300 से ज्यादा सीटें जीतेगी और मोदी जी देश में सरकार बनाएंगे तो इसका मतलब है कि मोदी जी चुनाव हार रहे हैं. जब बिहार में 2015 का विधानसभा चुनाव हो रहा था, तब वह तीन महीने तक यहां रुके थे और मतगणना के दिन सुबह 10.30 बजे तक भविष्यवाणी की थी कि भाजपा सरकार बनाएगी. परिणाम क्या था, भाजपा ने सिर्फ 53 सीटें जीतीं. जब वह पश्चिम बंगाल गए तो उन्होंने दो-तिहाई जनादेश के साथ अपनी सरकार बनने की भविष्यवाणी की. उनकी पार्टी ममता दीदी के खिलाफ लड़ रही थी, वहां क्या हुआ? उन्होंने हिमाचल और कर्नाटक में भी यही भविष्यवाणी की और परिणाम क्या थे? यदि वह दावा कर रहे हैं कि 300 सीटें जीतकर मोदी जी फिर सरकार बनाएंगे तो इसका मतलब है कि वह चुनाव हार रहे हैं.'

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