डीएनए हिंदी: मणिपुर हिंसा (Manipur Violence) को भड़के करीब 100 दिन बीत चुके हैं लेकिन अभी भी राज्य में तनाव की स्थिति है. इस मुद्दे पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा बरपा है. हाल ही में संसद के मानसून सत्र में विपक्ष और मोदी सरकार के बीच इस मुद्दे पर जबरदस्त बहस देखने को मिली थी. अब मणिपुर को लेकर बीजेपी की सययोगी पार्टी नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के सांसद का बयान सामने आया है. एनपीएफ के सांसद लोरहो पफोज ने बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि हमें संसद में बोलने नहीं दिया गया. मणिपुर पर मैं बोलना चाहता था लेकिन उच्च अधिकारियों ने मुझे अनुमति नहीं दी. उन्होंने मुझसे कहा कि सिर्फ गृहमंत्री ही बोलेंगे.'
एनपीएफ के सांसद लोरहो पफोज ने कहा, 'हमारे हाथ बंधे हुए हैं. हम एनडीए के सहयोगी हैं. इसलिए हमें कुछ आदेशों का पालन करना पड़ता है. लेकिन मणिपुर में जो हो रहा है उसके लिए हमारा चुप रहना ठीक नहीं है. मणिपुर मुद्दे को सरकार ने जिस तरह हैंडल किया वो सही नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मणिपुर पर ध्यान देना होगा. यहां के लोगों को मरहम लगाने की आवश्यकता है.' पफोज ने कहा कि पीएम मोदी को मणिपुर जाना चाहिए था और लोगों के जख्मों को समझना चाहिए था.'
'मणिपुर की किसी अन्य राज्यों से तुलना करना गलत'
पफोज ने कहा कि इस मुद्दे पर जिस तरह सीएम बीरेन सिंह को बचाया गया वह केंद्र से नाखुश हैं. मुंख्यमंत्री इस हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं. राज्य में महिलाओं के साथ बलात्कार और शोषण हुआ है उस पर महिला एवं बाल विकास मंत्री को बोलना चाहिए था. मणिपुर मुद्दे को जिस तरह केंद्र के द्वारा अन्य राज्यों का उदाहरण देकर डायवर्ट करने का प्रयास किया गया वो बिल्कुल गलत है. जब हम मणिपुर पर बात करते हैं तो उस अलग क्यों कर सकते हैं और दूसरे राज्यों से तुलना क्यों करनी है? प्रधानमंत्री की खुद आकर इन पीड़ितों के आंसू पोंछने चाहिए.
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मणिपुर पर की राहुल गांधी की तारीफ
पफोज ने कहा कि मणिपुर मुद्दे को जिस तरह राहुल गांधी ने उठाया है मैं उससे प्रभावित हूं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी हमारे विपरीत खेमे से हैं, लेकिन हिंसा के बाद जिस तरह उन्होंने मणिपुर का दौरा किया और पीड़ित लोगों से मुलाकात की इससे वहां के लोगों में उनके प्रति पर्सनल टच पैदा हुआ. इस समय यहां के लोगों को इसकी आवश्यकता है.
इंटरनेट सेवाएं कैसे की जाएं बहाल, सरकार ढूंढे रास्ता
वहीं, मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से लोगों को मोबाइल इंटरनेट सेवाएं मुहैया करने के तौर-तरीके ढूंढने को कहा है. अदालत राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बहाल करने की मांग से जुड़ी याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही है. राज्य में तीन मई को हिंसा भड़कने के बाद इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं. जस्टिस ए. बिमल सिंह और जस्टिस ए. गुणेश्वर शर्मा की पीठ ने शुक्रवार को निर्देश दिया, ‘राज्य प्रशासन, खासकर गृह विभाग को चरणबद्ध तरीके से और मामला-दर-मामला के आधार पर मोबाइल नंबर को एक विशेष सूची में शामिल करते हुए मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट सेवाएं मुहैया करने के तौर-तरीके तैयार करने पर विचार करना चाहिए.’
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पीठ ने कहा,‘‘राज्य प्रशासन को इस पहलू पर विचार करने और अगले दिन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया जाता है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने कहा कि मणिपुर सरकार ने ब्रॉडबैंड सेवाओं के मार्फत इंटरनेट सेवा पर से नरमी बरतते हुए पाबंदी हटाने के लिए जरूरी आदेश जारी किए थे. वकील ने कहा कि यह कुछ नियम व शर्तों को पूरा करने पर निर्भर करता है और फिलहाल कई नागरिक इस तरह की इंटरनेट सेवाओं का उपयोग कर रहे हैं. याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि चूंकि मोबाइल नंबर की उक्त सूची से कोई डेटा लीक नहीं हुआ है, ऐसे में उच्च न्यायालय राज्य सरकार को क्रमिक ढंग से सभी मोबाइल नंबर को इस सूची में डालने का उपयुक्त निर्देश दे सकता है. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने कुछ मोबाइल नंबर इस सूची में डालने के बाद मोबाइल इंटरनेट पर पाबंदी हटाकर कुछ परीक्षण भी किए हैं. मणिपुर में तीन मई के हिंसा भड़कने के बाद से राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर अनिश्चितकालीन पाबंदी लगी हुई है. उच्च न्यायालय 31 अगस्त को इस विषय पर अगली सुनवाई करेगा.
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