डीएनए हिंदी: अंग्रेजों के जमाने के बनाए गए भारतीय दंड संहिता-1860, की जगह पर केंद्र सरकार भारतीय न्याय संहिता अधिनियम लेकर आई है. इसके लिए संसदीय समिति कई कानूनों को लेकर अपने सुझाव गृह मंत्रालय को सौंपने वाली है. इसमें सेक्शन 377 (समलैंगिक संबंधों) और अडल्ट्री (विवाहेतर संबंधों) में बदलाव के सुझाव दिए गए हैं. 5 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों कानूनों को रद्द करते हुए ऐसे संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रख दिया था. संसदीय समिति ने इन्हें फिर से लागू करने की सिफारिश की है. इसके अलावा आजीवन कारावास के लिए भी कोई और शब्द इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है. समिति में शामिल विपक्षी सांसद पी. चिदंबरम ने समिति से लोकसभा चुनावों को देखते हुए इसे 6 महीने बढ़ाने की सिफारिश की थी.
यौन अपराधों के लिए समिति एक जेंडर न्यूट्रल (लैंगिक भेदभाव से परे तटस्थ) शब्द देने की सिफारिश कर सकती है. इसमें जबरन बनाए गए समलैंगिक, ट्रांसजेंडर संबंधों के लिए भी सजा के प्रावधान की सिफारिश की जा सकती है. इसके अलावा समिति की ओर से अडल्ट्री को फिर से अपराध के दायरे में लाने का सुझाव दिया जा सकता है. हालांकि, इसमें औपनिवेशिक कानून में बदलाव कर जेंडर न्यूट्रल सजा और अपराध का सुझाव दिया गया है. हालांकि, गृह मंत्रालय इन सुझावों को मानने के लिए बाध्य नहीं है.
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अडल्ट्री को फिर से अपराध के दायरे में लाया जा सकता है
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री कानून को रद्द कर दिया था और तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि ऐसे संबंध तलाक का आधार हो सकते हैं लेकिन इन्हें अपराध के दायरे में नहीं लाया जा सकता है. बता दें कि इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों के लिए सजा का प्रावधान था. कमेटी की सिफारिश है कि विवाह संस्था को बचाए रखना समाज के लिए जरूरी है और ऐसे में विवाहेतर संबंधों के लिए जेंडर न्यूट्रल कानून लाए जाने की जरूरत है. हालांकि, कमेटी की दी गई सिफारिशें मानने के लिए गृह मंत्रालय बाध्य नहीं है.
धारा 377 को फिर से बनाए रखने की सिफारिश कर सकती है कमेटी
धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा गया था जिसे 5 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. सूत्रों का कहना है कि कमेटी एक बार फिर से इस धारा को लागू करने की सिफारिश कर सकती है. कमेटी बैठक में धारा 377 पर भी चर्चा की गई और समिति का कहना है कि कोर्ट के फैसले के बाद भी असहमति से बनाए जाने वाले यौन संबंध के मामलों में धारा 377 के प्रावधान लागू हैं. पैनल एक बार फिर से सरकार को इसे लागू करने की सिफारिश कर सकती है.
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