डीएनए हिंदी: मोदी सरकार (Modi Government) ने इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) पर 5 साल का बैन लगा दिया है. केंद्रीय जांच एजेंसियों ने पहले अनेकों छापेमारी के दौरान संगठन के खिलाफ सबूत जुटाए और फिर गृहमंत्रालय ने इस मामले में सख्त एक्शन ले लिया. गृहमंत्रालय ने पीएफआई (PFI) के अलावा उसके अन्य 9 सहयोगी संगठनों को भी गैर कानूनी बताया है लेकिन संगठन से संबंधित राजनीतिक पार्टी SDPI के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया है.
PFI के खिलाफ दंगे भड़काने और देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के आरोपों के आधार पर सख्त एक्शन लिया गया है. वहीं अहम बात यह है कि SDPI यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया. इसकी वजह यह मानी जा रही है कि यह राजनीतिक संगठन पंजीकृत है और इसे अभी तक चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक मान्यताएं मिली हुई हैं.
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जानकारी के मुताबिक गृहमंत्रालय SDPI पर कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग से सिफारिश कर सकता है. गृह मंत्रालय के इनपुट के आधार पर चुनाव आयोग इस पार्टी को बैन भी कर सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक SDPI चुनाव आयोग के रडार पर पहले से ही है क्योंकि पार्टी की चंदे से जुड़ी जानकारियां सवालों के घेरे में हैं और इसको लेकर लगातार आयोग पार्टी से सवाल पूछे हैं.
जानकारी के मुताबिक 2018-19 और 2019-20 के चंदे की जानकारी एसडीपीआई ने नहीं दी थी. इस मामले में पार्टी का कहना था कि इन दोनों सालों में 20 हजार रुपये से भी कम चंदा मिला है. हालांकि ऑडिटेड अकाऊंट में 5 करोड़ और 4 करोड़ की राशि दिखाई गई थी. ऐसे में फंडिंग को लेकर पार्टी के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियां भी कार्रवाई कर सकती हैं.
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वहीं 2020-21 में पार्टी ने 2.9 करोड़ का चंदा बताया था लेकिन पार्टी के पदाधिकारी केवल 22 लाख रुपये की ही रसीद दे पाए थे. वहीं पार्टी ने यह भी घोषित नहीं किया कि चंदा देने वाले लोग कौन हैं. इस मामले में पाया गया है कि तीन साल में SDPI ने कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल से 11.78 करोड़ रुपये इकट्ठा किए हैं.
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एक रिपोर्ट के मुताबिक कोई भी SDPI सदस्य जो PFI की ओर से काम करता है या विध्वंसक और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त होता है या सांप्रदायिक नफरत फैलाता पाया जाता है तो उसके खिलाफ UAPA सहित प्रासंगिक कानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी.
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